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सम्पावकोय
ईसा-मूसा के समाधि-स्थल
'तुलसीप्रज्ञा' के इसी अंक में अन्यत्र भविष्य-पुराण का एक सन्दर्भ प्रकाशित है जिसमें ईशामसीह के भारत-आगमन का वृत्तान्त है। कश्मीर के इतिहास-ग्रन्थराजतरंगिणी (कल्हण) में भी कश्मीर के एक सुधारक संत के रूप में ईशा का विवरण है। वहां उसे ईशान नाम से संबोधित किया गया है। ___ मूल्ला नादिरी के ग्रंथ-'तारीख-ए-कश्मीर' में “सोलोमन के सिंहासन" का विवरण है जिस पर चार ऐतिहासिक इबारतें खोदी गई हैं। सन् १४१३ में वर्तमान रहे इतिहासकार मुल्ला नादिरी ने लिखा है कि राजा अख के पुत्र गोपानंद ने गोपदत्त के नाम से राज्य किया और उसने हजार वर्ष पुराने सोलोमन-सिंहासन का एक पसियन कारीगर से नवीनीकरण कराया । इस नवीनीकरण के समय उस पर निम्न चार इबारतें खोदवाई गईं :
(१) सिंहासन के पायों का निर्माता राज बिहिस्ती जरगर है जिसने इन्हें . सं० ५४ में बनाया-मेमर ईन सतून राज बिहिस्ति जरगर, सल्पज व
(२) ख्वाजा रुकुन, पुत्र मुर्जान् ने ये पाये बनाये-एन सतून बर्दस्त ख्वाजा ____रुकुन बिन मुर्जन् । (३) इस समय युज असफ ने पैगम्बर का संदेश सुनाया, सं० ५४ में
दर ईन वगत युज असफ दव-ए-पैगम्बर मिकुनद । सल पञ्च व चहर । (४) वह जीसस् है, इजराइल के पुत्रों का फरिश्ता ऐशान युज़ पैगम्बर-ए
बनी इजराइल अस्त । मुल्ला नादिरी ने लिखा है कि यज असफ राजा गोपदत्त के शासनकाल में पवित्र देश से इस घाटी में आया और उसने घोषणा की कि वह फरिश्ता है। वह परम कृपालु और दयालु था। उसने कहा था कि उसका जीवन, उसका संदेश है । वह रात-दिन भक्ति में डूबा रहता था। उसने कश्मीरी जनता का विश्वास जीत लिया था। मृत्यु के बाद उसे मोहल्ला अंजीमराह में दफनाया गया जहां से आज भी उसका संदेश प्रसारित होता है।
ईशामसीह की कब्र तदनुसार श्रीनगर की पुरानी आबादी के मध्य अंजीमर में बनी है जिसे रोज़बल कहते हैं। रोज़ (Rauza) फरिश्ते की कन को कहते हैं । यह चतुष्कोणीय बिल्डिग है जिसमें बनी कब्र पर भी इबारत है। इस इबारत में
तुलसी प्रज्ञा
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