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अहिंसा मनुष्य के लिये स्वाभाविक तथा जन्मजात सामर्थ्य का ही अंग है। पशु रूप में मनुष्य हिंसक है, किन्तु आत्मा रूप में वह हिंसक नहीं रह सकता । अहिंसा का अर्थ है अत्याचारी की इच्छा के विरुद्ध अपनी आत्मा को सन्नद्ध करना। सच्चे अर्थों में केवल वही व्यक्ति अहिंसक हो सकता है जिसने भय को जीत लिया हो ।
गांधीजी का विश्वास है कि हिंसा के आधार पर कोई वस्तु निर्मित नहीं की जा सकती । अहिंसा कर्मठता का दर्शन है निष्क्रियता का नहीं । अहिंसा न केवल हमारे विरोधियों को परास्त करती है अपितु हमें आंतरिक रूप से अधिक महान् बनाकर अन्य मनुष्यों के साथ एकता के सूत्र में बांधती है । अहिंसा सचेतन दुःख है जो हमारे सम्मुख दुःख सहन करने की शक्ति को प्रकट करती है । दुःख सहन करने से व्यक्ति का ही नहीं अपितु राष्ट्र का भी निर्माण होता है। गांधीजी का विख्यात 'हृदय परिवर्तन द्वारा क्रांति' का सिद्धांत अहिंसा के मनोवैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है।
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तुलसी प्रज्ञा
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