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ब्राह्मणार्थे गवार्थे वा सद्यः प्राणान्परित्यजेत् ।
मुच्यते ब्रह्महत्याया गोप्ता यो ह्मणस्य च ॥" मनुस्मृति की मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति भूलवश किसी प्राणी की हिंसा कर भी दे तो उस हिंसा के पाप से प्रायश्चित्त कर्म करने पर छुटकारा मिल सकता है । सांप को मारकर ब्राह्मण नोंकादार लोहे का डंडा और हिंजड़े को मारकर एक भार पुआल और एक मासा सीसा ब्राह्मण को देवे । वराह को मारने पर एक घड़ा घी, तीतर को मारने पर द्रोण तिल, सुग्गा के मारने पर दो वर्ष का बछड़ा, क्रौंच पक्षी के मारने पर तीन वर्ष का बछड़ा ब्राह्मण को दे। हंस, बालका, बगुला, मोर, वानर, बाज और भास पक्षी - इनमें से किसी को मारने पर एक गौ स्पर्श कर ब्राह्मण को देवे । घोड़े को मारने पर वस्त्र, गज को मारने पर पांच नीले बैल, बकरा और भेड़ को मारने पर एक बैल तथा गधे का वध करने पर एक वर्ष का बछड़ा दान के रूप में ब्राह्मण को देवे । कच्चा मांस खाने वाले पशुओं को मारने पर दुधारू गाय, तृणभोगी पशुओं को मारने पर जवान बछिया और ऊंट को मारने पर रत्ती भर सोना दान करे । चारों वर्गों की दुराचारिणी स्त्रियों को मारकर शरीर शुद्धि के लिये क्रमशः ब्राह्मणादि क्रम से चर्म पुट. धनुष, बकरा और भेड़ दान करे। यदि द्विज सर्पादिकों को मारने का प्रायश्चित्त 'दान' करने में असमर्थ हो तो प्रत्येक पाप की शांति के लिये एक-एक कृच्छ प्राजापत्य व्रत करे। हड्डी वाले एक सहस्र प्राणियों का वध करने पर तथा बहुत से बिना हड्डी वाले जानवरों का वध करने पर शूद्रवध का प्रायश्चित्त करे । हड्डी वाले जीवो का वध करने पर ब्राह्मण को कुछ देवे। बिना हड्डी वाले जीवों की हत्या करने पर प्राणायाम से ही शुद्धि हो जाती है। फल देने वाले वृक्ष, गुल्म, बल्ली, लतर और फलने वाले वृक्षों को काटने पर सौ बार गायत्री जाप करे। अनाजों से उत्पन्न जीवों का तथा गुड़ आदि रसों में और फल-पुष्पों में उत्पन्न जीवों का वध करने करने पर घी चाट लेने से शुद्धि हो जाती है। जोते हुए खेत में औषधियों और जंगल में स्वयं उत्पन्न वृक्षों को वृथा काटने से एक दिन केवल दूध पीकर ही रहे तथा गाय के पीछे-पीछे घूमें ! सूखे हुए मांस या जो न जाना हो, जो मांस कसाई के यहां का हो तथा गोबर छत्ता के खा लेने पर चांद्रायण व्रत करे। जो कच्चा मांस खाने वाले पशु सूअर, ऊंट, मुर्गा, कौआ और गधा-इनमें किसी का मांस ज्ञानपूर्वक खा लेवे तो पाप की शुद्धि के लिये कृच्छ्र व्रत करे । ब्राह्मण को तुण से भी मारने पर अथवा उसके कण्ठ में कपड़ा डालने या विवाद में जीतने पर उसको प्रणाम कर प्रसन्न करना चाहिये । ब्राह्मण को मारने की धमकी देने से सौ वर्ष और दण्ड प्रहार करने से हजार वर्ष तक नरक भोगना पड़ता है
____ अवगूर्य त्वब्दशतं सहस्रमभिहत्य च ।
जिघांसया ब्राह्मणस्य नरकं प्रतिपद्यते ॥ तीनों लोकों की हत्या करके और इधर-उधर भोजन करके भी ऋग्वेद को धारण करने वाला विप्र कुछ भी पाप को नहीं पाता। जो समाहित चित्त होकर ऋग्वेद संहिता को अथवा यजुःसंहिता को अथवा रहस्य के साथ सामवेद का तीन
तुलसी प्रज्ञा
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