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________________ अमूर्त मानसिक परिणति का साक्षात् नहीं कर सकता किन्तु इसके निमित्त से होने वाली मूर्त मानसिक परिणति का साक्षात्कार कर लेता है । उसका विषय मानसिक आकृतियों को साक्षात् जानना है और इसके लिए वह अपने आप में पूर्ण स्वतंत्र है। उसे किसी दूसरे पर निर्भर होने की अपेक्षा नहीं होती। विज्ञान की भाषा में आभामंडल के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है कि आभामंडल व्यक्ति की चेतना के साथ-साथ रहने वाला पुद्गलों और परमाणुओं का संस्थान है । चेतना व्यक्ति के तेजस् शरीर (विद्युत् शरीर) को सक्रिय बनाती है । जब तेजस् शरीर सक्रिय होता है तब वह किरणों का विकिरण करता है । यह विकिरण ही व्यक्ति के शरीर पर वर्तुलाकार घेरा बना लेता है । यह घेरा ही आभामंडल है। आभामंडल व्यक्ति के भावमंडल (चेतना) के अनुरूप ही होता है। भावमंडल जितना शुद्ध होगा, आभामंडल भी उतना ही शुद्ध होगा । भावमंडल मलिन होगा तो आभामंडल भी मलिन होगा । व्यक्ति अपनी भावधारा के अनुसार आभामंडल को बदल सकता मनः पर्याय ज्ञानी मानस परमाणुओं से मन के परिणामों को साक्षात् जान लेता है । मनोवैज्ञानिक भी आभामंडल के सहारे मन की स्थिति को पहचान लेता है । दोनों की प्रक्रियाओं में बहुत बड़ी समानता है । यह समानता इस बात की सूचक है कि जिस मनःपर्याय ज्ञान को समय के प्रभाव से विच्छिन्न मान लिया गया है, आज का विज्ञान उसके निकट पहुंच रहा है ? आधुनिक विज्ञान ने धर्म, दर्शन और आध्यात्म के अनेक रहस्यपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन किया है। आभामंडल के सहारे मन की स्थिति को पहचान लेने का उपक्रम उसी रहस्य की खोज में एक नई कड़ी है तथा अध्यात्म विदों के लिए चिन्तन और विकास के नये आयामों का उद्घाटन करने की पर्याप्त संभावना उसमें निहित है। -अग्रगण्य मुनि श्री श्वेतांबर तेरापंथ महासभा खण्ड २२, अंक ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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