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________________ किया कि बहुत शीघ्र ही वह समय आने वाला है जब किसी के बीमार होने से पहले ही हम बताने में समर्थ हो जायेंगे कि वह बीमार होने वाला है । शरीर पर बीमारी उतरने से पहले उसके विद्युत् बर्तुल पर बीमारी उतर आती । इससे पहले कि व्यक्ति की मृत्यु हो उसका विद्युत् वर्तुल सिकुड़ना शुरू हो जाता है । यहां तक कि कोई आदमी किसी की हत्या करे, उसके पहले ही उस विद्युत् वर्तुल में हत्या के लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं । प्रत्येक मनुष्य के ईर्द गिर्द एक आभामंडल होता है । मनुष्य अकेला ही नहीं चलता । उसके ईर्द गिर्द एक विद्युत् वर्तुल (इलेक्ट्रो डाइनेमिक फील्ड) भी चलता है । रुसी वैज्ञानिकों का कहना है कि जीव-अजीव में एक ही फर्क किया जा सकता है कि जिसके आसपास आभामंडल है वह जीवित है और जिसके पास आभामंडल नहीं है वह मृत है । उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि मृत्यु के बाद आभामंडल को विसर्जित होने में तीन दिन लगते हैं । जब तक आभामंडल कायम है तब तक व्यक्ति सूक्ष्म तल पर जीवित होता है । महावीर या अन्य आप्त पुरुषों के प्रतीक के साथ आभामंडल निर्मित किया जाता है । यह सिर्फ कल्पना नहीं है, एक वास्तविकता है । वास्तव में ही उनके आसपास एक आभामंडज होता है। अब तक तो इस आभामंडल को वे ही जान सकते थे जिन्हें गहरी और सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त थी किन्तु सन् १९३० में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने एक ऐसी रासायनिक प्रक्रिया निर्मित कर दी जिससे प्रत्येक व्यक्ति उस यंत्र के माध्यम से दूसरे के आभामंडल को देख सकता है । जिस प्रकार व्यक्ति के अंगुंठे की छाप अपनी निजी होती है उसी प्रकार आभामंडल भी अपना निजी होता है । आभामंडल उन सारी बातों को बता देता है जो व्यक्ति के गहरे अवचेतन मन में निर्मित होकर भविष्य में घटित होने वाली होती हैं जबकि व्यक्ति स्वयं उन्हें नहीं जान पाता । आगमों में ज्ञान के पांच प्रकार बताए गए है उनमें चौथा है— मनः पर्याय ज्ञान । मनोवर्गणा अथवा मन से सम्बन्धित परमाणुओं के द्वारा जो मन की अवस्थाओं का ज्ञान होता है, उसे मन पर्याय ज्ञान कहते है । मानसिक वर्गणाओं की पर्याय अवधि ज्ञान का विषय भी बनती है फिर भी मनःपर्याय ज्ञान मानसिक पर्यायों का विशेषज्ञ होता । एक डाक्टर समूचे शरीर की चिकित्सा विधि को जानता है और एक वह है जो किसी एक अवयव विशेष का विशेषज्ञ होता है । यही स्थिति अवधि और मन: पर्याय की होती है । मनः पर्याय ज्ञानी अमूर्त पदार्थ का साक्षात् नहीं कर सकता । वह द्रव्य मन के साक्षात्कार के द्वारा जैसे आत्मीय चिन्तन को जानता है, वैसे ही उसके द्वारा चिन्तनीय पदार्थों को जानता है । मनःपर्याय ज्ञान दूसरों की मानसिक आकृतियों को जानता है । समनस्क प्राणी जो चिन्तन करते हैं उस चिन्तन के अनुरूप आकृतियां बनती हैं । मनः पर्याय ज्ञानी मानसिक आकृतियों का साक्षात्कार करता है । मनः पर्याय ज्ञान आवृत चेतना का ही एक विभाग है । अतः वह आत्मा की तुलसी प्रज्ञा १६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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