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थणहिं सो ऊंचउ किअउ राउल ।
तरूणा जोवन करइ सो वाउल ।। , १३. वाह/डिअउ सो म्बालउ दीहरु ।'
(कवण)उ आधि न तहु जणु चाहउ ।। (हा)हि माठिइउ सुठु सोहहिं ।' एथु खता जणु सयलइ चाहहिं ।। पहिरणु फरहरें पर सोहा।'
राउल दीसतु सउ जणु मोहइ ।। १४. झुणि नेउरा/णी का न सुहावइ ।
अरू रे (नथुवा) कासु न भावइ । हांस गलउ जो चालति अइसी । सोवा वरउ राउल कइसी ।। जहि घर अइसी उलगं पइसइ ।' त घरू राउलु जइसउं दीसइ ।।०॥४॥४॥
,, १५. केहा टेल्लिपुतू तुंह झांखहि ।
(उलगं हु) वेहु तुंह आंखहि ॥ वेहु एक्कु सो एथु वन्निज्जइ । जो अक्खदह हीआ भिज्जइ ॥ यड्डा केह पाहु जो वड्ढा । सो घर तेहा गोरी लड्ढा ॥
चंदस वाणा टीहा किय्यइ । , १६. जे मुहं/एक्कणवि मंडिज्जइ ।
अक्खिहि कज्जलु गहरा दित्ता । जो निहालि करि मयण मत्ता ।। कय्यडि अहि सोहहिं दुइ गन्न । मडन-सडन डहि परि अन्न । कंठी कंढि जलाली सोहइ ।
१. वाइडिअउ लम्बी भुजाएं २. हाहिं माठिइउ-मांसल हाथ ३. पहिरणु फरहरेफड़फड़ाहट करने वाला पहराण ४. उलगं-देशी० स्त्री
खंड २२, अंक २
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