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________________ उत्तरप्रदेश सरकार ने १९९३-९४ में पच्चीस हजार रुपये देकर प्रति वर्ष घटाकर १९९४-९५ में तेरह हजार और १९९५-९६ में दस हजार अनुदान दिया है किंतु संस्थान के कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी उतने ही अधिक उत्साहित हुए हैं और उन्होंने सन् १९९५ में न केवल पंचाल का प्रस्तुत गौरवशाली अंक प्रकाशित किया अपितु ४ अप्रैल १९९५ को इलाहाबाद में प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी समारोह और २४ सितम्बर १९९५ को कानपुर में हजारीमल बांठिया सम्मान समारोह के भव्य आयोजन भी किए। वस्तुतः पंचाल - संपादक श्री ए. एल. श्रीवास्तव जो अपनी लगन और विदग्धता के लिए प्रसिद्ध हैं, अपने सुरूचिपूर्ण संयोजन और तादात्म्य से बहुत कुछ संजो लेते हैं और निष्पत्ति के रूप में पंचाल का कोई अभूतपूर्व अंक प्रस्तुत हो जाता है । प्रस्तुत अंक में पंचाल जनपद पर एक दर्जन से अधिक शोध पूर्ण निबन्ध हैं जो यहां की अतीतकालीन संस्कृति के अनेकों गवाक्ष खोलते हैं । श्री रत्नचन्द्र अग्रवाल, प्रो० राजू कलिदोस, डॉ० जी. सेतुरामन्, डॉ० चन्द्रशेखर गुप्त और डॉ० बी. एन. मिश्र आदि से आलेख प्राप्त कर लेना उनकी सफलता मानी जानी चाहिए। शोध लेखों के साथ तीन दर्जन से अधिक चित्रादि का प्रकाशन भी दुर्लभ कार्य है । ऐसे सुरुचिपूर्ण प्रकाशन के लिए बधाई । — परमेश्वर सोलंकी खण्ड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only १६५ www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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