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________________ वर्णन कहा करते हैं स्वभावोक्तिर्दुरूहार्थस्वक्रियारूपवर्णनम् । (१०-९२) काव्यप्रकाशकार के अनुसार बालक आदि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप, वर्ण एवं अवयवसंस्थान का वर्णन स्वभावोक्ति अलंकार कहलाता है स्वभावोक्तिस्तु डिम्भादेः स्वक्रियारूपवर्णनम् । (१०-४९२) इसमें स्वाभाविक क्रिया का वर्णन किया जाता है। 'रत्नावली' में स्वभावोक्ति अलङ्कार का प्रयोग श्रीहर्ष द्वारा बहुतायत से किया गया है । यथा औत्सुक्येन कृतत्वरा सहभुवा व्यावर्तमाना ह्रिया । तस्तैबन्धुवधूजनस्य वचनैर्नीताभिमुख्यं पुनः ॥ दृष्ट्वाने वरमात्तसाध्वसरसा गौरी नवे संगमे । संरोहत्पुलका हरेण हसता श्लिष्टा शिवायातु वः ॥" इस श्लोक में नवोढा की क्रिया का यथावत् वर्णन होने से स्वभावोक्ति अलङ्कार अन्य भी--- पुरः पूर्वामेव स्थगयति ततोऽन्यामपि दिशं । क्रमात्क्रामन्नद्रिद्रुमपुरविभागांस्तिरयति ॥ उपेतः पीनत्वं तदनु भुवनस्येक्षणफलं । तमः संघातोऽयं हरति हरकण्ठद्युतिहरः ॥ (III-७) अर्थात् शंकर के गले की कान्ति का अनुकरण करने वाला यह अन्धकार पुज पहले पूर्व दिशा को ही ढकता है, पश्चात् अन्य दिशाओं को भी। फिर क्रमशः फैलता हुआ पर्वतों, वृक्षों तथा ग्रामों के विभिन्न भागों को छिपा देता है । तदनन्तर गाढ़ता को प्राप्त होकर संसार के नेत्रफल का अपहरण कर लेता है। यहां अन्धकार के फलस्वरूप होने वाली दशा का स्वभाविक वर्णन होने के कारण 'स्वभावोक्ति' अलंकार है। ७. उपमा अलङ्कार यह सादृश्यमूलक अलंकार है । उपमा अलङ्कार में दो पदार्थों को समीप रखकर एक-दूसरे के साथ साधर्म्य स्थापित किया जाता है। काव्यप्रकाशकार ने उपमा की वैज्ञानिक परिभाषा दी है। इनके अनुसार उपमेयोपमान में भेद होने पर भी उनके साधर्म्य को उपमा कहते हैं ___ साधर्म्यमुपमाभेदे। उपमानोपमेययोरेव नतु कार्यकारणादिकयोः साधर्म्य भवतीति तयोरेव समानेन धर्मेण संबंध उपमा । भेद ग्रहणम् अनन्वयव्यच्छेदाय ।" दण्डी दो पदाणे के साम्य-प्रतिपादन को उपमा मानते हैं। साहित्यदर्पणकार ने उपमा की परिभाषा दी है साम्यं वाच्यमवैधयं वाक्यैक्य उपमा द्वयोः । (१०-१४) अर्थात् उपमा दो पदार्थों का वह वैधय॑वाच्य साम्य है जो कि एक वाक्यप्रतिपाद्य हुआ करता है। खंड २२, बंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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