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________________ 'कर्पूरमंजरी' का सौन्दर्य निकष समणी प्रसन्न प्रज्ञा 'कर्पूरमंजरी' नामक नाट्यकृति साहित्य जगत् को अद्भुत देन है। खेद का विषय है कि इ र एकमात्र शृंगारिक कृति के रूप में ही देखा गया है। लेकिन गहराई से अध्ययन करें, तो इसमें काम व शृंगार के भद्दे प्रदर्शन की जगह चरित्रनिष्ठ सौन्दर्य को हस्तगत किया जा सकता है । शृंगार का जो वर्णन हुआ है वह भी मूल स्वरूप तक पहुंचाने का साधन मात्र है। या यूं कहें सट्टकीय विधा का निर्वहन मात्र है । साध्य तो वही सत्य, शिव और सुन्दर ही है। ____ यदि दृष्टिकोण सम्यक् हो तो हर वस्तु सम्यक् स्वरूपा प्रतीत होकर आनन्ददायिनी बन जाती है । दृष्टिकोण की विकृति वस्तु को भी विकृत बना देती है । प्रज्ञा जागरण के बाद कोई भी विकृति, विकृति नहीं रहती है। भई होउ सरस्सई कवि राजशेखर ने ग्रंथारम्भ में सरस्वती देवी की स्तवना प्रस्तुत की है। सरस्वती विद्या की देवी है । यदि कवि का दृष्टिकोण केवल शारीरिक श्रृंगार को ही प्रकट करना होता तो कवि सर्वप्रथम विद्या की देवी की आराधना और उसके प्रति श्रद्धा प्रकट न कर किसी रमणी, सुन्दरी के प्रति अपने श्रद्धा के भावों का अर्पण करता । यदि किसी का धन के प्रति लालच है तो वह लक्ष्मी की आराधना करता है, यदि शक्ति की आकांक्षा है तो वह दुर्गा को प्रसन्न करता है। कर्पूरमंजरी का कवि विद्या का प्रेमी है । जो सदाचरण को धारण करे वही विद्वान् होता है। अतः विद्या की देवी को इष्ट मानना ही कवि के सदाचरण व सत्त्वगुण के प्रति गाढ़ अनुरक्ति का परिचय देता है। गंदंतु कवि ने कहा व्यासादि कवि आनन्दित होवें। इस गंवंतु क्रियापद से कवि की आध्यात्मिकता का अन्दाज लगाया जा सकता है। कवि का आनन्द प्राप्ति का दृष्टिकोण शारीरिक स्तर पर नहीं शरीरातीत आनन्द पर टिका हुआ है। कपमंजरी का सौन्दर्य बोध गंदंतु के आधार पर होगा यह अग्रिम सजगता का प्रयोग हुआ है । भास, कालिदास, भवभूति आदि की वाणी उत्कर्ष को प्राप्त करेयह कथन भी उदात्त है। इन कवियों की वाणी शिव और मंगल की पूर्ण प्रतिष्ठायिका है। उस वाणी के उत्कर्ष की कामना कर कवि ने स्वदृष्टिकोण को स्पष्ट किया है कि खंड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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