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प्राण ही है।४१ उपस्ति चाकायण ने भी "प्राण" को जगत् का परम तत्त्व माना है। उपस्ति चाकायण से जब यह पूछा गया कि समस्त पदार्थो का परम् तत्त्व क्या है, तब उसने जवाब दिया कि "प्राण" समस्त पदार्थों का परम तत्त्व है, क्योंकि समस्त विषयों या सत्ताओं की उत्पत्ति उसी से होती है और उसी में उनका निलय । उपनिषदीय दार्शनिक कौषीतकी ने भी 'प्राण' को चरम सत्य माना, किन्तु भिन्न रूप में । कौषीतकी ने प्राण का तीन अन्य तत्त्वों से ... "आयु", "प्रज्ञा" और "आत्मा" से तादात्म्य स्थापित किया, जिसका निष्कर्ष यह है कि शारीरिक दृष्टि से प्राण "आयु" है, मानसिक दृष्टि से प्राण "प्रज्ञा" है और तात्त्विक दृष्टि से प्राण "आत्मा" है।" कोषीतकी के इन विचारों से यह स्पष्ट होता है कि जगत् का तत्त्व "आत्मा" है।
बृहदारण्यक उपनिषद" में "आत्मा' को जगत् का मूल कारण या तत्त्व माना गया है । उसमें कहा गया है कि जगत् की उत्पत्ति के पहले केवल एक आत्मा की सत्ता थी। उस आत्मा को एक से दो होने की कामना हई. जिसके फलस्वरूप उसने अपने को दो भागों में - एक स्त्री और दूसरा पुरुष में विभाजित कर लिया। फिर उन दोनों से अन्य प्राणियों की उत्पनि हुई बृहदारण्यक उपनिषद् में, जगत् की इस उत्पत्ति प्रक्रिया में, जड़ तत्त्वों की उत्पत्ति का वर्णन नहीं हैं ।४५ अतः प्रश्न उठता है कि क्या जड़ तत्त्वों की उत्पत्ति आत्मा से होती है या नहीं ? इस समस्या का समाधान हमें तैत्तिरीय उपनिषद् में मिलता है। उसमें कहा गया है कि पहले आत्मा थी। उससे आकाश उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी, पृथ्वी से समस्त औषधियां, ओषधियों से अन्न और अन्न से पृथ्वी लोक का आश्रय लेकर रहने वाले प्राणी उत्पन्न हुए । ऐतरेय उपनिषद् में भी आत्मा को जगत् का मूल कारण मानकर, उसी से जगत् के अन्य विषयों की उत्पत्ति मानी है । उसकी विशिष्टता यह है कि उसमें आत्मा से विभिन्न लोकों की उत्पत्ति की कल्पना की गई
जसा कि ऊपर कहा गया है कि जगत् का मूल कारण या तत्त्क "आत्मा" है, उसी से जगत् के विषयों एवं पांच महाभूतों की उत्पत्ति होती हैं। किन्तु यहां प्रश्न उठता है कि चेतन आत्मा से जड़ महाभूत कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ? सम्भवतः इसी समस्या के कारण कुछ अन्य दार्शनिकों ने जगत् के मूल तत्त्व के रूप में, महाभूतों की उत्पत्ति नहीं मानकर, पाच महाभूतों एवं आत्मा, इन छहः तत्त्वों को माना ।५१ उन दार्शनिकों के अनुसार ये छह तत्त्व जगत् के प्रमुख कारण हैं, जिनकी न तो उत्पत्ति होती हैं और न ही उनका विनाश अर्थात् वे शाश्वत हैं । ५२ ।।
महाभूतों को शाश्वत कैसे माना जा सकता है. क्योंकि महाप्रलय में उनकी सत्ता नहीं रहती है । महाप्रलय में ये आदि कारण में निलय हो जाते हैं । इससे स्पष्ट होता है कि महाभूत जगत् के मूल कारण नहीं हो सकते, अपितु उनका “आदि कारण'' और "आत्मा" में दो तत्त्व जगत् के कारण हैं। यहां प्रश्न उठता है कि महाभूतों का "आदि कारण' क्या है ? महाभूतों के इस आदि कारण के रूप में कुछ दार्शनिकों ने "प्रधान" को स्वीकार किया, जो त्रिगुणात्मक है। उन दार्शनिकों के अनुसार “प्रधान" और खण्ड २२, अंक २
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