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कुलक ५० प्रतिशत सम्भावनाओं के साथ दोनों अवस्थाओं में यौगपद्येन विद्यमान है। यहां दोनों अवस्था तरंगों के आयामों (Amplitudes) का योग वा अन्तर ही दो अवस्थाएं है। दो इलैक्ट्रोन का पारस्परिक वैद्युत विकर्षण इस विजनितता की दोनों अवस्थाओं की ऊर्जाओं में अन्तर पैदा कर के उन्हें पृथक्-पृथक् दिखलाता है। यह तथ्य प्रयोगों से सिद्ध है । इस प्रकार कुलक के दो अवस्थाओं में (अथवा अधिक अवस्थाओं में) यौगपद्येन होने की सम्भावना क्वान्तमयान्त्रिकीय सिद्धान्तों में मान्य है। यह समझिये कि उपर्युक्त कुलक में दोनों इलैक्ट्रोन अपनी-अपनी कक्षाएं बदलते रहते हैं, यह एक अनुनाद की सी स्थिति है। एक इलैक्ट्रोन एक साथ दोनों कक्षाओं में माना जा सकता है। क्वान्तम यान्त्रिकीय धारणाओं के अनुसार दो कण योगपद्येन एक स्थान पर रह सकते हैं क्योंकि ये कण तरंग
रूप है।
इस प्रकार क्वान्तम यान्त्रिकीय धारणाओं में कार्य कारण भाव सिद्धान्त विरुद्ध कुछ उदाहरण उपस्थित करके अब हम यहां यह विवेचन करेंगे कि भारतीय दर्शनों में क्या ऐसी धारणाएं है या नहीं ?
१. छान्दोग्योपनिषद में त्रिवृत्करण सिद्धान्त एवं तैत्तिरीयोपनिषद् में पञ्चीकरण एवं वाद में सप्त भंगी आदि के सिद्धान्त कुछ ऐसी ही धारणाओं को लिये हुए है। उदाहरणार्थ पञ्चीकरण धारणानुसार पृथ्वी महाभूत में आधा भाग पृथ्वी तत्त्व एवं १/८ भाग अन्य महाभूत हैं। एक तत्त्वावस्था अन्य तत्त्वावस्थाओं का मिश्रण हो यह धारणा क्वान्तमयांत्रिकीय धारणाओं से
काफी साम्य रखती है। २. सांख्य दर्शन के अनुसार सभी तत्त्वों में सत्व रज: एवं तम का होना भी ऐसे
तथ्यों के ही उदाहरण प्रस्तुत करता है। विरुद्ध गुणों का एकत्र समावेश यहां मान्य स्वीकृत हुआ है। क्वान्तम यान्त्रिकीय धारणाओं के अनुसार कुलकों में सापेक्ष दृष्ट्या विरुद्ध धर्मों का समावेश तर्क संगत है। इलैक्ट्रोन विभवकूप को पार करता भी है और नहीं भी । इस प्रकार उसमें पार करने की सामर्थ्य एवं असामर्थ्य इन दोनों विरुद्ध धर्मों का योगपद्येन समावेश है । सांख्यानुसार महाभूत तामसिक सृष्टि है इसमें तमों गुण प्रधान है परन्तु सत्व एवं रजः की भी कुछ प्रतिशत सत्ताए है इस प्रकार अन्य तत्त्वों में भी योगेपद्येन सत्त्व रजः तम ये तीनों गुण अलग-अलग प्रतिशत मात्राओं में है ? ये सब धारणाएं
वैज्ञानिक गणित-दार्शनिकों को मान्य है। ३. किञ्च सत्व रज एवं तम की तो क्वान्मतयान्त्रिकीय सृष्टि संरक्षण, एवं विनाश के प्रकारकों (Operators of creation preservation and annihilation) से तुलना की जा सकती है। जापानी क्वान्तम फिजिक्स के विद्वान् डॉ० सकुराई ने इन प्रकारकों की तुलना ब्रह्मा विष्णु तथा महेश से की है।
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तुलसी प्रज्ञा
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