________________
जगत् के गतिविज्ञान में क्रान्तिकारी उन्नति हुई। यदि किसी सूक्ष्मदर्शीय कण (Microscopic Particle) की स्थिति के मापन में अनिश्चितता Ax हो एवं उसके संवेग (Momentum) के मापन में अनिश्चितता AP हो तो गुणनफल स्थिर संख्या h/47 से सदैव अधिक होगा।
___AX, AP 2h/4m यहां h प्लांक स्थिरांक h=6.625x10-7 वर्ग सैकिण्ड है। ध्यान रहे-ये अनिश्चितताएं मापन में अशुद्धि नहीं मानी जा सकती अपितु ये अनिश्चितताएं सूक्ष्म जगत् के कणों की गति स्थिति अध्ययन में अनिवार्य रूप से स्वयं निविष्ट हो जाती है। कोई ऐसी विधि नहीं जिससे इनका अध्ययन इन अनिश्चितताओं के बिना हो सके । यदि इनका अध्ययन करना है तो ये अनिश्चितताएं विश्लेषण में अवश्य आएंगी। इनका अन्वय-व्यतिरेक "यत्सत्त्वे यत्सत्त्वम् एवं यदभावे यदभावः'' सम्बन्ध है। यह कहा जा सकता है कि किसी यन्त्र विशेष तो क्या यदि आंख से भी इनको देखने का संयोग बन सके तो आंख की कनीनिका लैंस के कारण भी इनकी स्थिति में इतना विक्षोभ (Disturbance) पैदा जो जाएगा और इनकी गति स्थिति में इतना परिवर्तन होगा कि यह इस सूक्ष्म कण के अपने साइज़ से लाखों गुणा ज्यादा होगा अर्थात्---इस कण की स्थिति में इतनी अशुद्धि (यद्यपि यह शब्द सिद्धान्तानुसार अप्रयोज्य है।) आ जाएगी कि उसे वहां प्राप्त करना सम्भव ही नहीं। अन्य शब्दों में यह कहा जाय कि जब भी उसका अध्ययन किया जाता है तो उसकी स्थिति में इतना परिवर्तन हो जाता है कि स्थिति सम्बन्धी "अशुद्धि" उसके परिमाण को ही व्यपोहित कर लेती है । क्योंकि स्थिति गत्यध्ययन के प्रयासों में सूक्ष्मदर्शी यन्त्रादि के प्रयोग अनिवार्य है अतः अध्ययनार्थ प्रयास जहां भी होगा, यन्त्रों के प्रयोग मात्र से तरंगात्मक कण की स्थिति में विक्षोभ अवश्य आएगा। इस विक्षोभ के बिना इसका अध्ययन सम्भव ही नहीं। अतः इन विक्षोभों एवं कण की स्थिति का अन्योन्याश्रय या अविनाभाव सम्बन्ध है जब स्थिति में इस प्रकार की अनिश्चितता आती है, तो कण के संवेग (Momentum) गति में भी अनिश्चितता परिलक्षित होती है। कोई भी सूक्ष्म जगत् सम्बन्धी कण हो, इन दोनों अनिश्चितताओं के गुणनफल का अधिकतम मान h/4m ही हो सकता है। यह सम्बन्ध प्रयुक्त यन्त्र के निरपेक्ष है । इस अनिश्चितता राद्धान्त के सूत्रपात से सूक्ष्म जगत् के अध्ययन में कार्यकारण भावसिद्धान्त की मान्यताएं शिथिल हो गई। इस क्रान्तिकारी सिद्धान्त के सूत्रपात से पूर्व ही सम्भावना सिद्धान्त के आधार पर सांख्यकीय सम्भावना यान्त्रिकी (Statistical Probabilistical Mechanics) के सिद्धान्तों का विकास चल ही रहा था। अनिश्चितता राद्धान्त के सूत्रपात से क्वान्तमयान्त्रिकी की मूल भित्ति बनी। जिसका सांख्यकीय यान्त्रिकी से सम्बन्ध स्थापित किया गया।
क्वान्तम-यान्त्रिकी के सिद्धान्तों को समझने के लिए कुछ उदाहरण बिना गणितीय विश्लेषण के यहां दिये जाते हैं :
१. कल्पना करें कि इलैक्ट्रोन किसी विभवरोध (Potential barrier) को
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org