SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रामाण्यवाद और क्वान्तम यान्त्रिकीय धारणाएं शक्तिधर शर्मा न्याय वैशेषिकादि दर्शनों के प्रामाण्यवाद की मूलभित्ति कार्य कारणभावसिद्धान्त है। सम्पूर्ण वैज्ञानिक सिद्धान्तों की मूल भित्ति भी यही मानी जाती है परन्तु बीसवीं शताब्दी में सम्भावना सिद्धान्त एवं अनिश्चितता सिद्धान्त (Probability theory and uncertainty principle) की धारणाओं ने वैज्ञानिक जगत् में खलबली मचा दी। पञ्चावयव वाक्यों के आधार पर किये जाने वाले निर्णयों को चैलेन्ज किया गया। पिछले वैज्ञानिक, कार्यकारण-भाव सिद्धान्त की परम्परा के अन्धानुयायी थे । यहां तक कि आइंस्टाईन ने अनिश्चितता-राद्धान्त का प्रबल विरोध किया और वे मरने तक इन नई धारणाओं के समान्तर, सूक्ष्म जगत् की कठिनातिकठिन समस्याओं के समाधान के लिये परम्परागत धारणाओं के आधार पर ही सिद्धान्तों को सूत्ररूप में विकसित करके दिखलाने के प्रयत्न करते रहे। परन्तु-गणितज्ञ दार्शनिकों ने सम्भावना सिद्धान्त तथा अनिश्चितता राद्धान्त के आधार पर स्थैतिक एवं गातिक चलों की सूक्ष्म जगत् के गति-विज्ञान में इदमित्थं निर्णय में त्रुटियों की ओर निर्देश किया। __ऐसा प्रतीत होता है कि न्याय वैशेषिकादि दर्शनों में इदमित्थं निर्णयात्मक (Deterministic) धारणाएं हैं, वेदान्त में भी कुछ अनिश्चयात्मक परन्तु अधिकांश निषेधपरक धारणाएं उपलब्ध होती हैं। जैन दर्शनों में सापेक्षदृष्ट्या सम्भावानामूलक अनिश्चयात्मक धारणाओं के आधार पर प्रामाण्यवाद में एक विशेष, क्रान्तिकारी मोड़ स्याद्वाद के रूप में हमें प्राप्त होता है। नीचे इस विषय पर नवीन भौतिक विज्ञान की उच्चतम दार्शनिक गणित-शाखा क्वान्तम यान्त्रिकी (Qnantum Mechanics) एवं जैन तथा अन्य दर्शनों में ऐसी ही धारणाओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाएगा। ____ क्वान्तम-यान्त्रिकी में चिरसम्मत-यान्त्रिकी (Classical Mechanics) की प्राचीन कार्यकारण सिद्धान्तमूलक धारणाओं की तुलना में, बिल्कुल पृथक् रूप वाली, कार्यकारण सिद्धान्त के विपरीत धारणाओं का विकास हुआ है। इस नवीन गणितीय दार्शनिक शाखा में कार्यकारण सिद्धान्त को सम्भावना घनत्व (Probability densities) की धारणा ने शिथिल कर दिया। हाइजनवर्ग ने १९२७ में अनिश्चितता राद्धान्त की गणितीय व्यवस्था दी। इसके अनुसार स्थैतिक एवं गातिक चलों (Static and Dynamic Variables) के योगपद्येन (Simultaneously) मापन करने में अनिवार्य अनिश्चितताओं में ऐसे सम्बन्ध दिये जिससे सूक्ष्म खण्ड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy