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________________ ५५७. मुकदमा में दो चाये कोडा '२' गोडा । ५५८. मुख में राम बगल में छूरी । ५५९. मुर्गा के तो ताकु कोई डाम । ५६०. मुतलब को संसार सनेही । ५६१. मुतलब बणतां लोक हंसै तो हंसवा दो । ५६२. मुरदां के साथ कांधियां कोनी बलै । ५६३. मुरदे पर चाहे एक कस्सी गेरो चाहे सो कस्सी गेरो । ५६४. मूंग मोठ में कुण सो बड़ो अर कुण सो छोटो । ५६५. मूंछां उखाडा से मुरदा हलका थोडा हो छे । ५६६. मूर्खों का माल मसकरा खाय । ५६७. मूरख के माथे सींग कोनी होय । ५६८. मूरक ने टक्को दे देणुं अक्कल नहि देणी । ५६९. मूरख से काम पडे जद के करणूं चुप रह ज्यांणूं । ५७०. मूल से ब्याज प्यारो । ५७१. मेरे लला के कुण कुण यार ? धोबी छींपी अर मणियार । ५७२. मेरे छोटक्यां नै न्यूत चाहे बडोडा न्यूत से ढाई सेरया है । ५७३. मेरो मूंड मेरी ई मोगरी । ५७४. मेरी मियूं घर नहीं मुझे किसी का डर नहि । ५७५. मेहां की माया बिरखां की छाया । ५७६. मैं बी राणी तू भी राणी कुण भरे पंडो को पाणी । ५७७. मैं मरूं मेरी आई तूं क्यूं मरे पराई जाई । ५७८. मोडा करें मलार पराये घरां पर । ५७९. मोत्त मानगी मामलो मंदी मांगण हार पांचू मम्मा एकसा पत राख करतार । ५८०. मोत हराव, भूख निवावै । ५८१. मोर नाचैई नाचे पण आपका पगां कानी देखकर रोवे । ५८२. म्हाने इमरत लागे राबड़ी जीमे दांत हाल न जाबड़ी । ५८३. म्हारी ई बिल्ली महान ई म्याऊं । ५८४. म्हारे से आगल्याई नाम धरीवं सुन्दर । ५८५. म्हे नानासा थे धींगांसा म्हे करी मस्करी थे रो दिया । ५८६. म्याऊ को मूंडो कुण पकडै । ५८७. रंक री तो रो दे । ५८८. रजपूती धोरां में रलगी ऊपर चढ़ गई रेत । ५८९. रमता राम बैठया सो मुकाम । ५९०. रलाया हाथ धुवं । खण्ड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३९ www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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