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________________ राजस्थानी कहावतें -- एक संक्षिप्त संकलन [ स्व० मुनि हड़मानमल, सरदारशहर: राजस्थानी कहावतों पर पिछले वर्षों में स्व० डॉ० कन्हैयालाल 'सहल', पिलानी और स्व० पं० मुरलीधर व्यास, बीकानेर आदि ने अतीव महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया था । सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर से राजस्थानी कहावतें - शीर्षक से दो भागों में, एक प्रकाशन भी हुआ था । इन पंक्तियों को लेखक ने भी 'राजस्थानी किसान का वर्षा विज्ञान'--- शीर्षक से संबंधित कहावतों का एक लघु संग्रह (सन् १९५६ में ) प्रकाशित किया था । यह विषय इतना विस्तृत और व्यापक है कि इस पर बहुत अधिक कार्य करने की अपेक्षा है । स्व ० मुनि हड़मानमलजी, सरदारशहर ने अकारादि क्रम से ७३५ कहावतों का संग्रह किया है । यह संग्रह संख्या की दृष्टि से विशेष महत्त्व नहीं रखता और इसमें संग्रहीत अधिकांश कहावतें चिरपरिचित और लोकरूढ़ भी हैं किन्तु इनका संग्रह जनसाधारण सेदैनंदिन व्यवहार में किए जाने वाले प्रयोगों से हुआ है; अतः ये विचारो - तेजक हैं और पाठकों के लिए रुचि का विषय हो सकती हैं । कहावतों को बिना किसी भी प्रकार के परिष्कार या संशोधन के ज्यों की त्यों प्रकाशित किया जा रहा है । - संपादक अ १. अंधा धुंध की साहवी घटा टोप को राज । २. अक्कल उधारी कोनी मिलें । ३. अक्कल कोई के बाप की कोनी | ४. अक्कल बड़ी भैंस । ५. अक्कल बिना ऊंट उभाणा फिर । ६. अक्कल से खुदा पिछाणो । ७. अगम बुद्धि वाणियो पिछम बुद्धि जाट तुकं बुद्धि तुरकड़ो बामण सम्पट पाट । ८. अण मांग्या मोती मिले मांगी मिले न भीख । ९. अण समझ को कुछ नहीं समझदार की मौत । १०. अध पढ़ी विद्या धुवं चिता धुवं शरीर । खण्ड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only २१ www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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