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१२. डॉ० वेलवेकर ने का-तन्त्र को निम्न चार प्रकरणों में संपादित किया है
(१) संधि - संज्ञापद, समानपद, ओदन्तपाद, वर्गपाद, विसर्गपाद और
निपातपाद ।
(२) नाम लिंगपाद, व्यंजनपाद, सखिपाद, युष्मत् पाद, समस्तपाद, तद्धितपाद और स्त्री प्रत्ययपाद ।
(३) आख्यात - परस्मैपाद, प्रत्ययपाद, द्विर्वचनपाद, सम्प्रसारणपाद, गुणपाद, अनुषंगपाद, इढागमपाद और घुटपाद ।
(४) कृत सिद्धिपाद, धातुपाद, कर्मणिपाद, कुत्सुपाद और धातुसम्बन्धपाद । १३. 'प्राकृतेति सकल जगज्जन्तूनां व्याकरणादिभिरनाहित संस्कार: सहजो-वचन व्यापारः प्रकृतिः, तत्र भवं सैव वा प्राकृतम् । आरिसवयणे सिद्धं देवानं अद्धमागही वाणी इत्यादि वचनाद् वा प्राक् पूर्वं कृतं प्राकृतं, बाल- महिलादि सुबोधं सकलभाषा निबन्धनभूतं वचनमुच्यते मेघ निर्युक्तजलमिवैकरूपम् । तदेव च देशविशेषात् संस्कारकरणाच्च समासादितं विशेषं सत् संस्कृताद्युत्तरविभेदानाCota | अतएव शास्त्रकृताप्राकृतमादौ निर्दिष्टं तदनु संस्कृतादीनि । पाणिन्यादि व्याकरणोदित शब्दलक्षणेन संस्करणात् संस्कृतमुच्यते ।
- 'काव्यालंकार' टीका १४. देखें-- वूलनर की इन्ट्रोडक्शन टू प्राकृत; प्राकृत भाषाओं का व्याकरण-पिशेल, प्राकृत भाषा --- प्रबोध पंडित, प्राकृत साहित्य का इतिहास - जगदीश चन्द्र, प्राकृत भाषा और उनका साहित्य --- हरदेव बाहरी और प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास नेमीचंदशास्त्री |
१५. ऋग्वेद आदि संहिताओं एवं वैदिक साहित्य में ऐसे प्रयोग मिलते हैं ।
१६. विनयपिटक के चुल्लवग्ग, १६ सकनिरुत्ति - अनुजानना
खण्ड २२, अंक १
प्रकार है
'ते भिक्खू भगवन्तं एतदो चुं 'एतरहि, भन्ते, भिक्खू नाना नामा नाना गोत्ता नाना जच्चा नाना कुला पव्बजिता । सकाय निरुत्तिया बुद्ध वचनं दूसेन्ति । हन्द भयं, भन्ते, बुद्ध वचनं छन्द सो आरोपमा' ति । विगरहि बुद्धो भगवा - 'कथं हि नाम तुम्हे मोघपुरिसा, अप्पसन्नानं वा पसादाय पसन्नानं वा भियो भावाय । अथ ख्वेतं मोघपुरिसा अप्पसनानं चेव अप्पसादाय, पसन्नानं च एकच्चानं अज्जथयामि ।'
- देखें नालंदा संस्करण १९५६ पृ० २२८-२२९
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यह संदर्भ निम्न
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- परमेश्वर सोलंकी संपादक, तुलसी प्रज्ञा
जैन विश्व भारत संस्थान, लाडनूं
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