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आदि शाब्दिक और पारंपरीय प्राकृत
10 परमेश्वर सोलंकी
व्याकरण की एक परंपरा ऋक्तंत्रकार ने दी है - ब्रह्मा बृहस्पतये प्रोवाच । बृहस्पतिरिन्द्राय। इन्द्रो भारद्वाजाय। भरद्वाज ऋषिभ्यः। ऋषयो ब्राह्मणेभ्यः ।। १.४ ॥ इस परम्परा में दो सम्प्रदाय बनें । एक ऐन्द्र और दूसरा माहेश्वर ।
दूसरी परम्परा में कहा गया है कि युगान्त में लुप्त हुए शब्द रूप ज्ञान को स्वयंभू ने जाना और ऋषि मुनियों को बताया---
युगान्तेऽन्तहितान् वेदान् सेतिहासान् महर्षयः ।
लेभिरे तपसा पूर्वमनुज्ञाताः स्वयंभुवा॥ पाणिनि-शिक्षा से इस दूसरी परम्परा की पुष्टि होती है
अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामि पाणिनीयं मतं यथा ।
प्राकृते संस्कृते चापि स्वयं प्रोक्तं स्वयंभुवा ॥ -----कि मैं उस पाणिनीय शिक्षा को कहूंगा जो मूलतः स्वयं स्वयंभू द्वारा प्राकृत और संस्कृत भाषाओं में कही गई थी। स्वयं पाणिनि अइउण, ऋलक् - इत्यादि १४ समाहार सूत्रों को महर्षि महेश्वर द्वारा प्राप्त होना स्वीकार करते हैं और अपने से पूर्व हुए अनेकों शाब्दिकों के मत उद्धत करते हैं। जैसे--लङ शाकटायनस्यव (३.४.१११); अवङ् स्फोटायनस्य (६.१.१२३); वा सुप्यापिशले: (६.१.९२); सर्वत्र शाकल्यस्य (८.४.५१) इत्यादि ।
इस संबंध में बोपदेव ने अपने कविकल्पद्रुम (धातुपाठ) में आठ आदि शाब्दिकों के नाम दिए हैं
इन्द्रश्चन्द्र काशकृत्स्नापिशाली शाकटायनः ।
पाणिन्यमर जैनेन्द्रा जयन्त्यष्टादि शाब्दिकाः ॥ अर्थात् इन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न, आपिशाली, शाकटायन, पाणिनि, अमर और जैनेन्द्र-ये आठ आदि शाब्दिक हैं।'
इन आठ आदि शाब्दिकों में प्रथम इन्द्र के संबंध में एक उल्लेख कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय संहिता) में निम्न प्रकार पढ़ा गया है
वाग्वै पराच्यव्याकृता अवदत् । ते देवा अब्रुवन्निमां नो वाचं व्याकुविति। सोऽब्रवीद् वरं वृणै मह्यं चैष वायवे च सह गृह्याता इति। तस्माद् ऐन्द्र बंर २२, बंक १
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