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रूपायतन, शब्दायन, गन्धायतन, रसायतन स्पृष्टव्यायतन तथा धर्मायतन। इनमें छः आन्तरिक एवं छः बाह्य आयतन हैं ।
धर्मानुपश्यना के अन्तर्गत बोध्यंगों का विवेचन किया गया है । इसका विवेचन बोधिपाक्षिक धर्मों में भी किया गया है । जिसका अभिप्राय यह है कि ये बोध्यंग निर्वाण की प्राप्ति में सहायक होता है । बोधि का अर्थ ज्ञान होता है अर्थात् ज्ञान के अंग को ही बोध्यंग कहा जाता है । सात बोध्यंग स्मृति, धर्मप्रविचय, वीर्य, प्रीति, प्रब्धि, समाधि तथा उपेक्षा में परिगणित हैं ।
धर्मानुपश्यना के अन्तर्गत चार आर्यसत्यों का भी वर्णन किया गया है । जब तक इन चार आर्यसत्यों की अनुपश्यना नहीं होती है तब तक संसरण से मुक्ति नहीं मिलती है । आर्यसत्य शब्द दो शब्दों के योग से बना है - आर्य तथा सत्य । आर्य का अर्थ बुद्ध, अरहत या श्रावक होता है तथा सत्य का अर्थ यथाभूत तथ्य तथा असत्य के विपरीत है । इस प्रकार जो सत्य आर्य अर्थात् बुद्ध के द्वारा साक्षात्कृत है, वह आर्यसत्य है । चार आर्यसत्यों में दुःख, दुःख समुदाय, दु:ख निरोध तथा दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा का विवेचन किया गया है । दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपदा ही अष्टांगिक मार्ग है ।
इस प्रकार साधक द्वारा पञ्चनीवरण, पञ्च उपादानस्कन्ध, छः आन्तरिक एवं छः बाह्य आयतन, सात बोध्यंग एवं चार आर्यसत्यों का बार-बार अवलोकन करना ही धर्मानुपश्यना कहलाता है ।
सन्दर्भ :
१. धम्मपद ( यमक वग्गो)
२. एकायनो अयं भिक्खवे मग्गो सत्तानं विसुद्धिया, सोकपरिदेवानं समतिक्कमाय दुक्खदोमनस्सानं अत्यंगमाय, बाणस्स अधिगमाय, निब्बानस्स सच्छिकिरियाय, यदिदं चत्तारो सत्तिपट्ठाना । - - मज्झिमनिकाय ( सतिपट्ठान सुत्त )
३. सुठु वा खादिति खणति च काय चित्तबाधंति सुखं (अट्ठसालिनी पू२२३) ४. धम्मपद (चित्तवग्गो)
५. "पभस्सरमिदं भिक्खवे चित्तं तं च खो आगन्तुकेहि उपक्किलेसेहि उपक्कि लिटट्ठे " --अंगुत्तर निकाय १-१०
खंड २२, अंक १
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- संजय कुमार (शोध छात्र )
C/o अशोक कुमार सेवादल रोड
चांदचौरा, गया जिला गया (बिहार) पिन- ८२३००११
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