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बौद्ध दर्शन में स्मृतिप्रस्थानों का महत्त्व
संजय कुमार
बौद्ध दर्शन के क्षेत्र में स्मृतिप्रस्थानों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न विद्वानों एवं मनीषियों ने बौद्ध दर्शन के विभिन्न विषयों पर सारभूत ग्रन्थों की रचना की है और बौद्ध दर्शन के विभिन्न सिद्धांतों का सम्यक् अनुशीलन किया है, किन्तु पृथक रूप से निर्वाण का साक्षात्कार करने के लिये न्यष्टिभूत स्मृतिप्रस्थानों का न तो सम्यक् अनुशीलन ही प्रस्तुत हुआ है और न पृथक् रूप से गवेषणा ही की
गई है।
सतिपट्टान शब्द दो शब्दों के योग से निष्पन्न है-सति एवं पट्ठान । सति शब्द को संस्कृत में स्मृति कहा जाता है जो स्म् स्मरणे धातु के कित्तम प्रत्यय के योग से निष्पन्न है, जिसका अर्थ है--स्मरण, पूर्वानुभूत विषयों का पुन: स्मरण करना आदि । पट्ठान शब्द में 'प' उपसर्ग प्रधानार्थक है तथा ठान शब्द स्थान का वाचक है। अतः पट्ठान शब्द का अर्थ प्रधान स्थान होता है। इस तरह सतिपट्टान शब्द का अर्थ हैस्मृति का प्रधान स्थान । भारतीय दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रस्थानों में यथा---उपनिषद्, योगदर्शन आदि ग्रन्थों में स्मृति की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है और कहा गया है कि स्मृति के प्राप्त होने पर सभी ग्रंथियां समाप्त हो जाती है। मूल रूप से ज्ञात विषयों का अनस्मरण ही स्मृति है। बौद्ध दर्शन में स्मृति को द्वाराध्यक्ष कहा गया है। जैसे द्वार पर अवहित प्रहरी के होने पर अवांछित तत्त्वों का प्रवेश घर में नहीं होता है वैसे ही मनोद्वार पर स्मति रूपी द्वारपाल जब पूर्णतः जागरूक रहता है तो चित्त अनपेक्षित क्लिष्ट वृत्तियों का प्रवेश असंभव हो जाता है। स्मृति और चित्त का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। स्मृति से ही चित्त सुभावित होता है। स्मृति के अभाव में चित्त का सुभावित होना असंभव है । जैसे ठीक से न छाये घर में वृष्टि का जल प्रवेश कर जाता है वैसे ही अभावित चित्त में राग का अनुप्रवेश हो जाता है। किन्तु जब घर ठीक से छाया होता है तो वृष्टि के जल का अनुप्रवेश उसी प्रकार संभव नहीं है जिस प्रकार सुभावित चित्त में क्लेशादिवत्तियां अनुप्रविष्ट नहीं हो पातीं।' अतः यह सिद्ध है कि चित्त को प्रभास्वर, पर्यवदात एवं सुरक्षित बनाने में स्मृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है । स्मृति ही चित्त को जागरूक एवं एकाग्रभूमिक बनाती है ।।
बौद्ध दर्शन के अनुसार स्मृतिप्रस्थानों की संख्या चार है। चारों स्मृतिप्रस्थानों का एक ही लक्ष्य है.... निर्वाण । ये चार स्मृति प्रस्थान ही प्राणियों को चित्त की शुद्धि के लिये, शोकादि से छुटकारा दिलाने के लिये, दुःख दौर्मनस्य के नाश के लिये, सत्य
खंड २२, अंक १
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