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शिल मुण्डिदे तुण्डमुण्डदे चित्त ण मुण्डिते कीश मुण्डिते । जाह उण अचित्तमुण्डिदे शाहु शुरु शिल ताह मुण्डिते ॥ धार्मिक मान्यताओं के साथ कुछ अन्य प्रकार के लोक विश्वास भी प्रचलित थे । कुछ ग्रहों के योग को अनिष्ट समझा जाता था
अङ्गारकविरुद्धस्य प्रक्षीणस्य बृहस्पतेः । ग्रहोsयमपरः पार्श्वे धूमकेतुरिवोत्थितः ।।
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अनेक प्रकार के शकुन और अपशकुन पर भी विचार किया जाता था । सामने कौवे का रूखे स्वर में बोलना, पुरुष के लिए बायीं आंख फड़कना आदि अपशकुन माने जाते थे
रूक्षस्वरं वाशति वायसोऽय
मात्मृत्या मुहुराह्वन्ति ।
सव्यं च नेत्रं स्फुरति प्रसह्य
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मानिमित्तानि हि खेदयन्ति ॥ स्खलति चरणं भूमौ न्यस्तं न चार्द्रतमा मही । स्फुरति नयनं वामो बाहु मुहुश्च विकम्पते ॥
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८. शिक्षा
उस समय ब्राह्मण वेद अध्ययन में निपुण । रामायण, महाभारत, पुराण, गीता आदि का भी अध्ययन किया जाता था । गणित और ज्योतिष भी पढ़े जाते थे । शूद्रक विविध विद्याओं में निष्णात था । वह गणित, नाट्यविद्या, हस्तशिक्षा आदि में निष्णात
था
ऋग्वेदं सामवेदं गणितमथ कलां वैशिकीं हस्तिशिक्षा | M
हस्तिविद्या के अतिरिक्त चौर्यविद्या का भी प्रभूत प्रचार-प्रसार था। सेंध लगाने के भी नियम थे । " कनकशक्ति, भास्करनन्दी तथा योगाचार्य इस शास्त्र के आद्याचार्य माने जाते थे
नमो वरदाय कुमार कार्तिकेयाय
नयो भास्कर नन्दिने
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नमः कनकशक्तये ब्रह्मण्यदेवाय देवव्रताय ।
नमो योगाचार्याय यस्याहं प्रथमः शिष्यः । १७
चौर्य में बल एवं साहस के अतिरिक्त शिक्षा - बल की आवश्यकता थी । चोर शर्विलक कहता है
कृत्वा शरीरपरिणाहसुखप्रवेशं
शिक्षा बलेन च बलेन च कर्ममार्गम् । "
६. कला
कलाक्षेत्र में 'नृत्य, गीत, अभिनय एवं वाद्य कला विकसित अवस्था में थी । स्वयं महाकवि शुद्रक 'वैशिकी कला' में निपुण था । वसन्तसेना के लिए विट ने कहा था कि वह नृत्य गीतादि के अभ्यास से दूसरों को ठगने में कुशल हो गई है और अपना स्वर परिवर्तन भी कर लिया है
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तुलसी प्रशा
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