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________________ प्राकृत के प्राचीन बोली विभाग प्रो० प्रबोध वे० पंडित [सितम्बर सन् १९५३ में पार्श्वनाथ विद्याश्रम के उपक्रम से कॉलेज ऑव इण्डोलोजी, बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी में डॉ० प्रबोध पंडित, अहमदाबाद ने तीन व्याख्यान दिए थे। उनके दूसरे व्याख्यान में प्राकृत भाषा की प्राचीन बोलियों पर सारभित चर्चा है। डॉ० टी० आर० वी० मूर्ति की अध्यक्षता में हुए इस व्याख्यान को यहां साभार अनुमुद्रण किया जा रहा पहले भाषण में डॉ० प्रबोध पंडित ने कहा था- 'एक ओर से वर्तमानकाल की बोलचाल की नव्य भारतीय भाषाएं और दूसरी ओर से प्राचीनतम भारतीय आर्य भाषा जैसे कि वेद की भाषा, यह दोनों स्वरूपों के बीच को जो भारतीय भाषा इतिहास की अवस्था है ? उसको हम प्राकृत नाम दे सकते हैं।' अथवा 'बुद्ध और महावीर से प्राकृत काल का आरम्भ होता है, और यह काल, साहित्य-स्वरूप में करीब-करीब विद्यापति, ज्ञानेश्वर आदि नव्य भारतीय आर्य भाषा के आदि लेखकों से चार या पांच शताब्दी से पहले खत्म हो जाता है।' - और तीसरे व्याख्यान में उन्होंने प्राकृत का स्वरूप बताया- शौरसेनी वा उसका प्रकृष्ट स्वरूप-विकसित स्वरूप-महाराष्ट्री हमारे समक्ष किसी प्रदेश या समय की व्यवहार भाषा की हैसियत से आती नहीं, हम उसको सिर्फ साहित्यिक-स्वरूप में ही पाते हैं । इस दृष्टि से प्राकृतों का विकास संस्कृत की तरह ही होता है। उत्तरकालीन प्राकृतों में हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की प्राकृत भाषा का प्रधानतया साहित्य विद्यमान है।' प्राकृत भाषा के अध्ययन-अनुसंधान को अद्यतन बनाने के लिए यह अनुमुद्रण किया है । आशा है, अधिकारी विद्वान् इस ओर सचेष्ट होंगे। - सम्पादक] प्रधानतया प्राकृत साहित्य के दो मुख्य अंग हैं। बौद्ध साहित्य और जैन साहित्य । दोनों का उद्गम एक ही काल में और एक ही स्थल में होते हुए भी, उनकी विकासधारा अलग-अलग है। पालि साहित्य विपुल है। परम्परा के अनुसार भगवान बुद्ध के उपदेशों की तीन आवृत्तियां उनके निर्वाण के बाद २३६ साल तक हुई। ये तीन आवृत्तियां राजगृह, वैशाली और पाटलीपुत्र की परिषदों में सम्पन्न हुई। इन आवृत्तियों की खंड २२, अंक १ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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