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________________ आख्यात एवं धातु का दार्शनिक स्वरूप श्रीमती सरस्वती सिंह संस्कृत का 'धातु' शब्द अपने आप में व्यापक एवं महत्त्वपूर्ण है । संस्कृत में लगभग दो हजार धातुएं उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से शब्दों का निर्माण होता है तथा उन शब्दों का सम्प्रेषण दूसरी भाषाओं में होता है । पाणिनि के पूर्ववर्ती शाकटायन तथा आचार्य यास्क' ने धातु को सभी तरह के प्रातिपदिक शब्दों का मूल माना है । पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिकों में प्लेटो तथा जर्मन विद्वान् प्रो हेस' ने भाषा - उत्पत्ति के सिद्धांतों में धातु - सिद्धान्त को स्वीकार कर ४००-५०० धातुओं से भाषा की उत्पत्ति का निर्देशन किया है । अतः कहा जा सकता है कि संस्कृत की धातुएं अन्य भाषाओं के शब्द भण्डार को भरने में भी सहायक सिद्ध हुई हैं । धातु शब्द 'धातु' शब्द धारणार्थक 'धा' धातु से उणादि सूत्र के बना है । इसका शाब्दिक अर्थ है- 'धारण करना ।' यह शब्द किसे धारण करता है ? इसके उत्तर में आचार्य को धारण करने वाले शब्द को 'धातु' कहा जा सकता है। के मत में धातु को सभी प्रकार के शब्दों के अर्थों को धारण इसी आधार पर कुछ विद्वानों ने 'सर्वं धातुजमाह' सभी शब्द ऐसा घोषित कर दिया । 'धातु' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग गोपथ ब्राह्मण' में देखने को मिलता है । ऋग्वेद - प्रातिशाख्य' में भी एक जगह आख्यात के लक्षण में धातु शब्द का उल्लेख हुआ है । कुछ आचार्यों ने धातु शब्द का सीधे कथन न करके आख्यात शब्द के द्वारा उसका कथन किया है । 'आख्यायते सर्वप्रधानीभूतोऽर्थः अनेन इति आख्यातम् अर्थात् जिससे क्रियारूप मुख्य अर्थ का अभिधान होता है उसे 'आख्यात' कहा जाता है । इस व्युत्पत्ति आख्यात शब्द को धातुपरक माना गया । ऐसा मानने का औचित्य यह है कि क्रियारूप मुख्य अर्थ का अभिधायक धातु ही होता है आख्यात नहीं । आख्यात शब्द का क्रियापद के तात्पर्य में भी प्रयोग मिलता है । आचार्य यास्क ने अपने आख्यातः - लक्षण में 'जिसमें' भाव की प्रधानता होती है उसे आख्यात माना है । इन्होंने व्रजति, पचति आदि सम्पूर्ण पद को आख्यात माना है । इसके बाद महर्षि पाणिनि ने अपने गणसूत्र में क्रियापद में ही आख्यात का प्रयोग किया है न कि धातुमात्र में । यदि आख्यात का अर्थ धातु होता तो गोपथ ब्राह्मण में धातु एवं आख्यात खण्ड २२, अंक १ 'तुन्” प्रत्यय के योग से प्रश्न हो सकता है कि धातु यास्क का कहना है कि 'अर्थों Jain Education International For Private & Personal Use Only इससे स्पष्ट है कि यास्क करने वाला माना गया । उत्पन्न हुए हैं, धातु से २५ www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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