SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५. पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं उस्सग्गोवि य, अभितरओ तवो होइ ।। ४६. जिणवयणं 'सिद्धं चेव', भण्णए' कत्थई उदाहरणं । आसज्ज उ सोयारं, हेऊ वि कहिंचि भण्णेज्जा ।। ४७. कत्थई पंचावयवं, दसहा वा सव्वहा न पडिसिद्धं । न य पुण सव्वं भण्णति, हंदी सवियारमक्खातं ।। ४७।१. तत्थाहरणं दुविहं, चउव्विहं होइ एक्कमेक्कं तु । हेऊ चउव्विहो खलु, तेण उ साहिज्जए अत्थो । ४८. 'णातं आहरणं ति य, दिद्रुतोवम्म निदरिसणं तह य । एगळं तं दुविहं, चउब्विहं चेव नायव्वं ।। ४९. चरितं च कप्पितं या, दुविहं तत्तो चउविहेक्केक्कं । आहरणे तद्देसे, तद्दोसे चेवुवन्नासे ॥दारं।। ५०. चउधा खलु आहरणं, होति अवाओ उवाय ठवणा य । तह य पडुप्पन्नविणासमेव पढमं चउविगप्पं ॥ १. उसू ३०३० । २. सिद्धमेव (जिचू)। ३. भण्णती (अचू), भण्णइ (ब), भण्णई (अ)। ४. कत्थ वि (जिचू), कत्थति (अचू)। ५. इस गाथा का दोनों चूणियों में कोई उल्लेख नहीं मिलता। यह गाथा प्रक्षिप्त प्रतीत होती है क्योंकि आगे की गाथा में पुनः इसी विषय की पुनरुक्ति हुई है यहां यह गाथा विषयवस्तु की दृष्टि से भी अप्रासंगिक लगती है । ६. नायमुदाहरणं (हा)। ७. च (जिचू), वा (हा)। ६. भवे चउहा (अ,ब), ५० से ८५ तक की गाथाओं का दोनों चूणियों में कोई संकेर नहीं है किन्तु व्याख्या और कथानक मिलते हैं। मुनि पुण्यविजयजी ने ५६,७३ और ८२ इन तीन गाथाओं को उद्धृतगाथा के रूप में माना है। ऐसा अधिक संभव लगत है कि चूणि की व्याख्या के अनुसार किसी अन्य आचार्य ने इन गाथाओं की रचना की हो किन्तु गाथा ५०वीं की व्याख्या में टीकाकार हरिभद्र स्पष्ट लिखते हैं कि'स्वरूपमेषां प्रपञ्चेन भेदतो नियुक्तिकार एव वक्ष्यति' (हाटी प. ३५) तथा गा. ५२ की व्याख्या में 'प्रकृतयोजना पुननियुक्तिकार एव करिष्यति, किमकाण्डः एव नः प्रयासेन' (हाटी प ३६)। इसके अतिरिक्त गा. ७९ की व्याख्या में भी भावार्थस्तु प्रतिभेदं स्वयमेव वक्ष्यति नियुक्तिकारः (हाटी प. ५५) कहा है। इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि टीकाकार के सामने ये गाथाएं नियुक्तिगाथाओं के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। अतः हमने इनको नियुक्तिगाथा के क्रम में रखा है। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy