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________________ इस गणना से स्पष्ट होता है कि मनुष्य १०० वर्षों में १०३६८००००० श्वासोन्छ्वास लेता है। जबकि देवताओं को इतने ही श्वास लेने में १५ अरव ५५ करोड़ २० लाख से लेकर ५ खरब १३ अरब २१ करोड ६० लाख दिन लगते हैं। दोनों की समीक्षा उपरि लिखित अन्तर का एक कारण यह हो सकता है कि मर्त्य लोक का एक वर्ष देवताओं का एक दिन होता है। इसके समर्थन में डा० परमेश्वर सोलंकी ने अपनी 'शकसाका' नामक पुस्तक के १४वें पृष्ठ पर दो उदाहरण दिए हैं(१) तैत्तरीय ब्राह्मण (३.९.२२) तो स्पष्ट ही कहता है--- “एकं वा एतद् देवानामहः यत् संवत्सरः ।" यह जो संवत्सर है वह देवताओं का एक दिन है। (२) पारसी लोगों के धर्म ग्रंथ में इसी भाव का वाक्य है ___ "त एच अपर मइन्यएन्ते यत परे ।" संस्कृत छाया (ते च अहरं मन्यन्ते यद् वर्षम्) अर्थात् जिसे हम वर्ष मानते हैं उसे वे देवता दिन कहते हैं। डा० सोलंकी ने अन्यत्र एक लेख (त्रिलोकसार का कल्कि और सेण्डाकोटस) में वाल्मीकि रामायण के आधार पर सहस्रक को दिन का वाचक बताया है। सदर्भ इस प्रकार है अप्राप्तयौवनं बालं, पंच वर्ष सहस्रकम् । अकाले कालमापन्न, मम दुःखाय पुत्रक ॥ (वाल्मीकि रामायण-उत्तरकांड, सर्ग ७३ श्लोक ५) इस पर टीका करते हुए पंडित रामाभिराम लिखते हैं'पंचवर्षसहस्र कम्' वर्षशब्दोऽत्रदिनपरः, किञ्चिन्यून चतुर्दश वर्ष मित्यर्थः । गीता प्रेस रामायण में इसका अर्थ दिया है-बेटा ! अभी तो तू बालक था। जवान भी नहीं होने पाया था। केवल पांच हजार दिन (तेरह वर्ष दस महीने बीस दिन) की तेरी अवस्था थी। तो भी तू मुझे दुःख देने के लिए असमय में ही काल के गाल में चला गया। ___इस प्रकार दिव्य वर्ष और दिन तथा लोकिक वर्ष और दिन में ३६०४३६० = १२९६०० कम अधिक का अन्तर होता है । लौकिक दिन १२९६०० का एक दिव्य वर्ष होता है । डा० सोलंकी के इस कथन की पुष्टि सूर्य सिद्धान्त से भी होती है। ज्योतिष ग्रन्थ सूर्य सिद्धान्त (सं० एफ० हॉल अर्डम् १९७४) के १४वें अध्याय में नौ प्रकार का कालमान बताया गया है । वहां टीका में लिखा है ब्राह्मम्-कल्पो ब्राह्ममहः प्रोक्तम् । परमायुः शतं तस्य । दिव्यं तवह उच्यते । बण्ड २२, अंक! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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