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________________ राजा की भांति देवनगर-सोमनाथ की यात्रा की और सामंतसिंह की बहिन लीला से विवाह रचाया। पाटन में प्रभुता अणहिलवाड़ापाटन गुर्जर देश की राजधानी था। वहां पर सोलंकियों की सत्ता को स्थापित करने वाले मूलराज के बारे में सुना जाता है कि उसके जन्म के संबंध में, चमत्कारयुक्त कारण होने से, वह अयोनिज था (संभवतः उसका जन्म शल्य क्रिया से हुआ हो) । उस मूलराज ने अपने पराक्रम से अपने मामा सामन्तसिंह की हत्या कर गुर्जर देश को अपने अधीन कर लिया। पाटन के बाद _हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है कि चौलुक्य भीमदेव (प्रथम) का पुत्र क्षेमराज था और क्षेमराज का पुत्र देवप्रसाद तथा पौत्र त्रिभुवनपाल था। कुमारपाल का चित्तौड़ लेख हेमचन्द्र द्वारा दी गई वंशावली की पुष्टि करता है। हेमचन्द्र आगे सूचित करते हैं कि क्षेमराज युवावस्था से ही तपस्यापरायण था। इसलिए उसने अपने पुत्र का नाम देवप्रसाद रखा और जब उसे सिंहासनारूढ किया जाने वाला था, तो सत्ता का मोह छोड़ एकान्तवास करने के लिए दधिस्थली चला गया। जब उनके कनिष्ठ भ्राता कर्ण को सिंहासनासीन किया गया तो क्षेमराज ने अपने पुत्र देवप्रसाद को उसकी सेवा में भेज दिया। कर्ण की मृत्यु से पूर्व ही देवप्रसाद एक अग्नि काण्ड में जल मरा इसलिये उसका पुत्र त्रिभुवनपाल सिद्धराज के संरक्षणार्थ पाटन आ गया। त्रिभुवनपाल ने सिद्धराज की निष्ठापूर्वक सेवा की। त्रिभुवनपाल के (बड़े) पुत्र कुमारपाल ने सिद्धराज के निस्संतान मरने पर पाटन का सिंहासन पाया। प्रभाचन्द्र के अनुसार कुमारपाल के (छोटे) भाई कीर्तिपाल को सिद्धराज ने नवघण के विरुद्ध एक अभियान का नेता बना कर भेजा था। सोलंकियों के एक राव की बही में उद्धृत कुंवरपालजी की पहिचान हम कीर्तिपाल से करते हैं । उक्त रावजी के अनुसार कुंवरपालजी ने सिया (तालुका धानेरा, उ० गुजरात) में आवास किया । उक्त राव के अनुसार कुंवरपालजी (उर्फ कीर्तिपाल) के छः कुंवर थे. तथा उनके वंशज नामों के आगे दर्शाये गये ग्रामों में अभी निवास करते बताये जाते हैं :.. १. नपराज रूपनगर (मेवाड़ में) २. पृथ्वीराज भीनमाल, फिर धनवाड़ा, लेदरमेर व खानपुर (तीनों भीनमाल तहसील में) ३. श्यामजी सेवाड़ा सोलंकियान, कावतरा व खारा (क्रमशः रानीवाड़ा, भीनमाल व सांचोर तहसीलों में) ४. जोधजी लाहगढ़ ५. वागजी कपूरड़ी (जिला बाड़मेर) ६. नागलजी वाव के भोमिया (वाव, उत्तर-गुजरात में है) राजस्थान में सोलंकियों का पाटवी ठिकाना रूपनगर होने पर भी उसका अणपंज २१, अंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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