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________________ परायण योद्धा था । उसने अगणित शत्रुओं को विनष्ट किया । राजधानी बनाई | फिर उसके नाम से चौलुक्य नाम का एक वंश चला। पुरा मुरारिवद्विश्व विश्वोद्धार धुरन्धरः । चुलुक्य इति विख्यातः संजातः क्षत्रियोपमः ॥२.१६ ॥ प्रमुख दो गोत्र विह्नण ने 'विक्रमांकदेव चरित' में लिखा है कि एक बार जब ब्रह्मा संध्या अनुष्ठान में लगे हुए थे, तब इन्द्र ने प्रार्थना की कि एक योद्धा की उत्पति कीजिये और ब्रह्मा ने अपने चुलुक के जल से एक वीर उत्पन्न किया । उस वीर से राजाओं का एक क्रम चला, जिसमें हारीत और मानव्य राजा हुए। इन महीपतियों का विवरण देते हुए जगदीशसिंहजी लिखते हैं, "विल्हण ने हारीत और मानव्य को चालुक्य वंश में बतलाया है । इनका पहले अयोध्या में तथा बाद में दक्षिण में राज्य करना बतलाया है । कर्नल टॉड ने इनका मूल स्थान लाहौर बतलाया है । उपलब्ध तथ्यों से यही ज्ञात होता है कि चालुक्य उत्तर-भारत के ही क्षत्रिय थे और उनका मूल-पुरुष हारीत था । दक्षिण भारत के चालुक्य उत्तरी भारत के चालुक्यों से भिन्न हैं। दक्षिण के चालुक्यों का गोत्र मानव्य था, लेकिन उत्तर भारत चालुक्यों का गोत्र भारद्वाज था ।" इसी बिन्दु पर सी० वी० वैद्य का कथन है कि दक्षिण के चालुक्य राजपूताना के चालुक्यों से भिन्न हैं। दोनों क्षत्रिय हैं, परन्तु मराठा चालुक्य अपने को सूर्यवंशी कहते हैं और उनका गोत्र मानव्य है, जबकि राजपूताना के चालुक्य अपने को सोमवंशी कहते हैं और उनका गोत्र भारद्वाज है । गोत्रों के इस विवाद को अमान्य ठहराते हुए रघुनाथसिंहजी, कालीपहाड़ी ने लिखा है, भिन्न गोत्र होने से दक्षिण व उत्तर के चालुक्य भिन्न मालूम पड़े, राजवंश में ) पीछे लिखा जा चुका है कि राजपूतों के गोत्र उनके गुरु गोत्र होते हैं । अतः भिन्न गोत्र होने से वंश भिन्न नहीं होता है । " "सी० वी० वैद्य को परन्तु जैसा (क्षत्रिय व पुरोहितों के इन उपाख्यानों के बारे में डॉ० एस० के० मजूमदार का मत है कि जयसिंह सूरि के अतिरिक्त अन्य समस्त ग्रन्थ-लेखकों ने देवी-देवताओं की कहानियों का अभिकथन किया है; क्योंकि उस काल में राजवंशों की उत्पति किसी पौराणिक या महाकाव्य के वीर पुरुष से मानने की सामान्य प्रथा थी । प्रत्यक्ष रूप से ये कहानियां हमारे वर्तमान उद्देश्य के लिये निरर्थक हैं । मधुपद्म को अपनी चारण भाटों की कथाएं चन्द बरदाई के पृथ्वीराज रासो की ( राजस्थान भारती, बीकानेर से मुद्रित ) प्रति में चाहमानों की उत्पति के बारे में लिखा है कि ब्रह्मा के यज्ञ से आदि-वीर पुरुष चौहान मानिकराय उत्पन्न हुआ (ब्रह्मा न जग उपन्न भूर, मानिकराइ चहुआन सूर), लेकिन पृथ्वीराज रासो के सबसे वृहत् संस्करण (जिसे नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस ने छापा है) के अनुसार अबू पर्वत पर वशिष्ठ के नेतृत्व में एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया । इस कार्य में राक्षस विघ्न डालने लगे । इससे मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से वशिष्ठ की प्रार्थना पर प्रतिहार, चालुक्य और परमार एक के बाद एक प्रकट हुए, लेकिन कोई भी राक्षसों को हराने में सक्षम न हुआ, तो चाहमान को ६२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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