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सोलंकी-राजवंश का यायावरी इतिहास
[ राव गणपतसिंह चोतलवाना
'सोलंकी' शब्द
डॉ० ओझा के अनुसार 'सोलंकी' शब्द का उल्लेख प्राचीन शिलालेखों, ताम्रपत्रों और ग्रन्थों में चौलुक्य, चालुक्य या चुलुक्य और कहीं-कहीं चलुख, चलुक्य, चालक्य, चौलुक्कि, चुलुख एवं चुलुग (के रूप में) मिलता है।' बादामी (वातापी), वैगी तथा कल्याणी के राजवंश चलुक्य या चालुक्य के नामों से प्रसिद्ध थे। मूलराज द्वारा स्थापित राजवंश ने स्वयं को अपने अभिलेखों में चौलुक्य के रूप में लिपिबद्ध करवाया है। इनके अतिरिक्त लगभग बीस अन्य राजकूल भी थे, जो अपने आपको चालुक्य, चुलिक अथवा चौलुक्य कहते थे ।
साधारणतया चौलुक्य-शब्द राजकुटुम्ब अर्थ में प्रयोग किया जाता है । 'पृथ्वीराज-विजय' में एक स्थान पर लिखा है कि सात सौ चुलुक्यों (चलुक्यान्तम्) ने पुष्कर पर धावा बोला । टीकाकार ने इसका अर्थ चुलुक्य जाति के सदस्य (जनविशेषाणाम्) लिखा है, जिसकी पुष्टि कुछ अन्य स्रोतों से भी होती है। पौराणिक आख्यान
कुमारपाल के शिलालेख -वड़नगर प्रशस्ति में वर्णन है कि दनु के पुत्रों से रक्षा पाने के लिये देवताओं ने ब्रह्मा से प्रार्थना की। ब्रह्मा उस समय संध्या करने के लिये आसन पर विराजमान थे, उन्होंने गंगा जल से भरे हुए चुलुक (पात्र) में से चुलुक्य नामक पराक्रमी पुरुष को उत्पन्न किया, जिसने अपनी कीर्ति से तीनों लोकों को पवित्र किया। उससे एक जाति का उद्भव हुआ, जो चौलुक्य नाम से विख्यात है।
_ 'व्याश्रय काव्य' के टीकाकार अभयतिलक गणि ने चौलुक्य वंश शब्द पर टीका करते हुए उपरोक्त कथा को दोहराया है। मेरुतुङ्ग ने भी 'प्रबन्ध-चिंतामणि' में अभयतिलक गणि की पुनरावृति की है, जिसका सार है कि साहसी योद्धा (चौलुक्य वंश प्रवर्तक) संध्या के समय किये हुए ब्रह्माजी के आचमन से उत्पन्न हुआ। बालचन्द्र सरि ने अपने ग्रन्थ 'वसंत-विलास' में वड़नगर प्रशस्ति का अनुसरण करते हुए जोड़ा है कि प्रथम चौलुक्य की उत्पति राक्षसों का विनाश करने के लिए की गई थी। इन ग्रन्थकारों के पीछे जयसिंह सूरि हुआ, जिसने अपने 'कुमारपाल भूपाल चरित' में अनैसर्गिक वंशोत्पति की उपेक्षा करते हुए अपने नायक के पूर्वजों की वंश-परम्परा का आरम्भ चुलुक्य नाम के महान् योद्धा से खोजा : चुलुक्य एक महान् एवं धर्मखण्ड २१, अंक
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