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प्राकृत भाषाओं का अध्ययन
आर्ष प्राकृत : स्वरूप एवं विश्लेषण
o आचार्य महाप्रज्ञ
आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत, व्याकरण में आर्ष-विधियों को वैकल्पिक बताया है। इस नियम के अनुसार उन्होंने आगम-सूत्रों के उन स्थलों का निर्देश किया है, जो उनकी दृष्टि में व्याकरण-सिद्ध नहीं थे । उदाहरणरूप में कुछ प्रयोग प्रस्तुत हैं
'पच्छेकम्म', 'असहेज्ज'—ये दोनों आर्ष-प्रयोग हैं। इनमें जो ‘एकार' है, वह व्याकरण-सिद्ध नहीं है।
'आउंटणं'-इस प्रयोग में जो 'चकार' को 'टकार' वर्णादेश है, वह व्याकरणसिद्ध नहीं है।
'अहक्खाय', 'अहाजायं--प्राकृत व्याकरण के अनुसार आदि के 'यकार' को 'जकार' वर्णादेश होता है। किन्तु आर्ष-प्रयोग में 'य' का लोप भी हो जाता है। ये दोनों प्रयोग उसके उदाहरण हैं।'
'दुवालसंगे'-प्राकृत व्याकरण के अनुसार इस प्रयोग में 'लकार' वर्णादेश प्राप्त नहीं हैं, किन्तु आर्ष में ऐसा प्रयोग मिलता है।
'इक्खू, खीरं,' सारिक्खं--ये आर्ष-प्रयोग हैं। प्राकृत व्याकरण के अनुसार, अक्ष्यादि गण के संयुक्त 'क्ष' को 'छकार' आदेश होता है। जैसे—उच्छू, छीरं, सारिच्छं।
प्राकृत भाषा में सामान्यतः 'क्ष' को 'ख' कार आदेश होता है।" आर्ष-प्रयोगों में प्रायः वही मिलता है।
आर्ष-प्रयोग में 'थ्य' को चकार आदेश होता है। जबकि प्राकृत व्याकरण से उसे 'छकार' आदेश दिया गया है ।
प्राकृत व्याकरण में "श्मशान' का 'मसाण' रूप बनता है। आर्ष-प्रयोग में इसके दो रूप मिलते हैं-सीआण, सुसाण ।'
प्राकृत में 'स्रोत' शब्द का 'सोत्तं' रूप बनता है किन्तु आर्ष में 'पडिसोओ' "विस्सोअसिआ' ---रूप भी मिलते हैं।" ____ आर्ष-प्रयोग में संयुक्त वर्ण के अन्त्य व्यंजन से पूर्व 'अकार' होता है। तथा 'उकार' भी होता है ।१२
आर्ष-प्रयोग में 'किरिया' पद का 'किया' रूप भी मिलता है ।११ आर्ष-प्रयोग में द्रह शब्द का 'हरए' रूप मिलता है।"
खंड २२, अंक १
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