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________________ जन्तु, मानी, मायावी, योग सहित, क्षेत्रज्ञ आदि । महापुराण में जीव, प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, आत्मा, अन्तरात्मा, ज्ञ और ज्ञानी को एकार्थक माना गया है ।" आत्मविद्या का अधिकारी कौन है ? इस विषय पर उपनिषद् और जैन-दर्शन की समान मान्यताएं हैं। केवल शब्दों का अन्तर या वैभिन्न्य है । एक मार्मिक श्लोक उद्धत है : विद्या ह वै ब्राह्मणमाजगाम गोपाय मा शेवधिष्टेऽहमस्मि । असूयकायानृजवे शठाय मा मा ब्रूया वीर्यवती तथा स्याम् ॥ यमेव विद्याः श्रुतमप्रमत्तं मेधाविनं ब्रह्मचर्योपपन्नम् । अर्थात् विद्या ब्राह्मण के पास आई और बोली- मैं तुम्हारी हूं। तुम मेरी रक्षा करो । ईर्ष्यालु, अऋजु तथा असंयमी व्यक्ति को मुझे मत देना । यदि तुम ऐसा करोगे तो शक्तिशालिनी बनूंगी, मुझमें ओज प्रस्फुटित होगा । जो विद्या के प्रति जागरूक हो । अप्रमत्त मेधावी, ब्रह्मचर्य सम्पन्न और सम्यक् रूप से शिष्यत्व ग्रहण कर चुका हो। उसी को इस आत्मविद्या का उपदेश करना । उपनिषदों में अनेक स्थलों पर आत्मविद्या के अधिकारी का निर्देश प्राप्त होता है । एकनिष्ठता, अनन्य श्रद्धा, सतत जागरूकता और संसारिक विषयों के प्रति अनासक्ति आत्मविद्या के अधिकारी के लिए अनिवार्य है । यह तथ्य नचिकेता के प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है जो यमराज के द्वारा प्रदत्त हजारों प्रलोभनों एवं अलभ्य भोगों के प्रति अनाकृष्ट और निर्विण्ण होकर अपने प्राप्तव्य के प्रति सदा जागरूक रहता है । वह कहता है अस्मा इमाम् उपसन्नाय सम्यक् २६ परीक्ष्य दद्यात् वैष्णवीमात्मनिष्ठाम् ॥ न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यो लप्स्यामहे वित्तमद्राक्ष्म चेत्त्वा । जीविष्यामो यावदीशिष्य सित्वं २७ वरस्तु मे वरणीयः स एव ॥ खण्ड २२, अंक ४ अर्थात् मनुष्य को धन तृप्त नहीं किया जा सकता । अब यदि आपको देख लिया है तो धन पा ही लेंगे। जब तक आप शासन करेंगे तब तक हम जीवित रहेंगे, किन्तु हमारा प्रार्थनीय वर तो वही है । अन्त में यमराज को भी उसकी निष्ठा, सत्यधारणा की प्रशंसा करनी पड़ी नैषा तर्केण मतिरापनेया Jain Education International प्रोक्तान्येनैव सुज्ञानाय प्रेष्ठ । यां त्वा सत्यधृतिर्बतासि २८ त्वादुङ्नो भूयान्नचिकेतः प्रष्टा ॥ For Private & Personal Use Only ३१७ www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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