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शोधकर्ता ने तेरापंथ के नवम आचार्य द्वारा उद्भावित और देशव्यापी आन्दोलन के रूप में प्रचारित-प्रसारित अणुव्रत-भावना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को उजागर किया है और परंपरा-निर्वाह के स्थान पर युगप्रधान की तरह उनके द्वारा किए गए चरित्र-निर्माण के प्रयासों का विवरण दिया है। उसने धर्म और पंथ का भेद खोलकर भिक्षा देने-लेने को बंद करके भारतीय समाज में से आर्थिक असंतुलन मिटाने की बात भी कही है। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में वह कहता है कि 'अणुव्रत-आन्दोलन' के प्रवर्तक आचार्य तुलसी राजनीति से दूर हैं। उनका किसी भी दल से कोई संबंध नहीं है और न वे किसी वाद से जुड़े हैं। वे देश के किसी एक छोटे से कोने में रहते हैं परन्तु सारे देश के लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं। ____शोध कर्ता ने तेरापंथ में स्रजित नव श्रेणी-समण-समणी की उपयोगिता प्रतिपादित की है और उसके द्वारा अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान के प्रसार की कहानी कही है। अनेकान्त इन्टरनेशनल और लाडनूं-स्थित मान्य विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर प्रकाश डाला है।
साथ ही एम. ए. गुणसेकरे द्वारा केलीफोनिया यूनिवर्सिटी, सेनडियागो में प्रस्तुत थीसिस (१९८६) के हवाले से मुनि चंदनमल आदि के नव तेरापंथ का व्यौरा दिया है और इस संबंध में श्री सतीश कुमार, केनथ ओल्डफील्ड, एल. पी. शर्मा इत्यादि अनेक लोगों के पक्ष-विपक्ष के विचार भी उद्धृत किए हैं।
सर्वाश में जर्मन भाषा में लिखा यह शोध प्रबन्ध अधुनातन जैन जगत् के आकार-प्रकार दश-दिशा और भविष्य की संभावनाओं के बीज समेटे हुए है किन्तु शोधकर्ता ने स्वयं कोई निष्कर्ष नहीं दिए; इसलिए इस दृष्टि से और शोधकर्ताओं को आगे आना चाहिए।
-परमेश्वर सोलंकी
खण्ड २२, अंक ४
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