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________________ मनोविकास की भूमिकाएं समणी प्रसन्नप्रज्ञा हर प्राणी सुख एवं शान्ति की इच्छा करता है, दुःख व अशान्ति कभी किसी को प्रिय नहीं होती।' बन्धन सबसे बड़ा दुःख है । मुक्ति सबसे बड़ा सुख । ऐकान्तिक व आत्यन्तिक सुख का ही अपर नाम है मुक्ति । जब चेतना आवृत्त होती है तब उसके संज्ञान के साधन मन और इन्द्रिय होते हैं और जब उसका आवरण हट जाता है तब उसके संज्ञान का साधन होती है -चेतना । इसलिए चेतना को जानना अथवा चेतना को मन व इन्द्रियों से ऊपर उठा लेना ही मुक्ति है । गुरुदेव गणाधिपति श्रीतुलसी के शब्दों में यह समाधि है। हमारी अशान्ति एवं दुःख का मूल कारण है-चंचलता । और चंचलता मन का विषय है । मानवीय देह में मन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मन को ही बंधन एवं मोक्ष का कारण माना गया है 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः । बंधाय विषयासंगि, मोक्षे निविषयं स्मृतम् ॥' वास्तव में 'मन' एक बहुचर्चित शब्द है । किसी ने इसे चेतना का पर्याय माना है तो किसी मे जड़ व पुदगल । किसी ने इसकी उपस्थिति को वरदान मानकर इसकी प्रशंसा की है तो किसी ने इसे अभिशाप मानते हुए इसे लोभी, लालची और चोर कहा है । आचार्य महाप्रज्ञजी कहते हैं-'वस्तुतः कोई भी भौगोलिक राज्य इतना बड़ा नहीं है जितना मनोराज्य है । कोई भी यान इतना द्रुतगामी नहीं है जितना मनोयान । कोई भी शस्त्र इतना संहारक नहीं है जितना मनःशस्त्र है और कोई भी शास्त्र इतना तारक नहीं है जितना मनःशास्त्र है।" __ मन एकान्ततः न बुरा है न अच्छा। वह मारक शस्त्र है तो तारक शास्त्र भी है। यह आत्मा और इन्द्रियों के बीच सम्पर्क साधता है । इन्द्रियों का कार्य विषयों का ग्रहण होता है परन्तु ग्रहीत विषयों पर निर्णय व निर्धारण मन करता है। वह उन्हें किस रूप में निर्धारित करे, इसके लिए मन स्वतन्त्र भी नहीं है। वह माध्यम मात्र है। इसीलिये स्वामी राम ने भी माना है कि मन एक प्रमुख माध्यम है, अन्तर्जगत् व बहिर्जगत के बीच । इसके बिना साध् संभव नहीं। सभी साधन इसी मन की गतिविधि, शुद्धि और एकाग्रता पर निर्भर करते हैं।' अर्थात् इन्द्रियां और शरीर साधना के प्रमुख स्रोत हैं पर ये साधना में उपयोगी तभी हो सकते हैं जब मन नियंत्रित हो। बंर २२, अंक ४ ३११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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