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________________ उपमा-अलंकार के स्वरूप-लक्षण कुमारी सुनीता जोशी प्रस्फुट और सुन्दर साम्य को उपमा कहते हैं । इस अलंकार के चार अङ्ग होते हैं १. उपमेय-वर्ण्य विषय को उपमेय कहा जाता है । २. उपमान-वर्ण्य विषय की जिस अप्रस्तुत वस्तु से समानता दिखायी जाती है उसे उपमान कहते हैं। ३. साधारण धर्म-उपमेय एवं उपमान दोनों में रहने वाली विशेषता को साधारण धर्म कहते हैं। ४. उपमावाचक-शब्द जिनसे उपमेय की उपमा, उपमान से दी जाती है यथा-इव, सदृश, यथा, तुल्य इत्यादि । लक्षण में 'प्रस्फुट' पद इसलिए रखा गया है जिससे गम्य साम्य वाले रूपक आदि अलङ्कारों से उपमा का भेद हो सके। 'सुन्दर' पद से तात्पर्य है--चमत्कार को उत्पन्न करने वाला । 'गौरिव गवयः' (गो के समान नील गाय है) इस वाक्य में कोई चमत्कार नहीं है इसलिए यहां पर उपमा नहीं हो सकती। 'साम्य' का तात्पर्य है-- समानता। यह समानता तीन प्रकार की होती है-१. क्रियागत, २. गुणगत, ३. उभयपत। काव्यशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत स्वरूप १. भरत 'नाट्यशास्त्र' के सोलहवें अध्याय में भरत मुनि ने अलङ्गारों का विवेचन प्रस्तुत किया है जिसमें सर्वप्रथम उपमा, दीपक, यमक और रूपक इन चार अलङ्कारों का प्रतिपादन है। उपमा अलङ्कार को उन्होंने सर्वप्रथम स्थान देते हुए उसे समस्त अलङ्कारों का मूल माना है । उन्होंने उपमा को परिभाषित करते हुए कहा है-'जहां काव्य रचना में सादृश्य के आधार पर एक वस्तु की उपमा दूसरी वस्तु से दी जाती है वहां उपमा अलङ्कार होता है । वह उपमा गुण और आकृति पर आश्रित होती है।' भरत ने 'उपमेय' अथवा 'उपमान' की एकता अथवा अनेकता के अनुसार उपमा की चार स्थितियों का वर्णन किया है । एक से एक की, अनेक से एक की, एक से अनेक की एवं अनेक से अनेक की उपमा दी जाती है। इस परिभाषा में यास्क द्वारा निर्दिष्ट और गार्ग्य कृत उपमा लक्षण का प्रभाव होने से किञ्चित् नवीनता द्रष्टव्य है। बण्ड २२, बंक ४ ३०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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