SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामक अध्ययन है । इनकी कथा विस्तार से निरयावली आवश्यक-चूणि," आवश्यक वृत्ति, (हरिभद्र)" भगवती वृत्ति (अभयदेव)" तथा आवश्यक में बणित है। ये दोनों राजा श्रेणिक की चेलना रानी से उत्पन्न पुत्र थे। चेलना वैशाली के राजा चेटक की पुत्री थी। हल्ल और वेहल्ल को चेटक ने एक हाथी और सोने का हार उपहार में दिया जिसे उसके बड़े भाई कुणिक (अजातशत्रु) ने मांगा । इन दोनों ने हाथी और हार कुणिक को देने से इनकार कर दिया और अपने नाना चेटक के पास वैशाली चले आये । इस पर चेटक और कुणिक में भयंकर युद्ध हुआ। भगवती सूत्र में इन दो महायुद्धों---महाशिलाकण्टक सग्राम और रथ-मुसल संग्राम का वर्णन है । इसमें कुणिक की विजय हुई।" पर अनुत्तरोपपातिक में चेलना के दो पुत्रों का नाम वेहल्ल और वेहायस दिया गया है तथा हल्लकुमार का परिचय द्वितीय वर्ग में धारिणी देवी और श्रेणिक के पुत्र के रूप में दिया गया है। अनुत्तरोपपातिकदशा के प्रथम वर्ग का सातवां अध्ययन और द्वितीय वर्ग का तीसरा अध्ययन लष्टदन्त नामक हैं। दोनों की माता धारिणी और पिता सम्राट श्रेणिक हैं । सम्भव है कि लष्टदन्त नामक दो राजकुमार रहे हों या श्रेणिक की बहुत सी रानियों में से धारिणी नाम की दो पत्नियां हों और दोनों के पुत्र का नाम लष्टदन्त रहा हो । तीसरा मत भाषा संबंधी है । प्राकृत के एक शब्द के संस्कृत में कई उच्चारण होते हैं। जैसे प्राकृत "कय" का संस्कृत में “कज", "कच" या "कृत" तथा "कइ" का संस्कृत "कपि", "कवि" आदि हो सकता है। एक नाम लष्ट दन्त तथा दूसरा राष्ट्रदान्त रहा हो तथा प्राकृत में र और ल में अभेद के कारण दोनों "लट्ठदन्त" हो गये हों। अधिक संभावना इस बात की है कि विभिन्न मुनियों द्वारा वाचना में अपनी याददाश्त से पाठ का वाचन करने के कारण प्रमादवश एक ही अध्ययन दो बार संकलित हो गया है । प्रस्तुत अंग के प्रथम वर्ग में अभयकुमार का केवल नाम निर्देश कर दिया गया है। परन्तु अभयकुमार के विषय में छठे अंग, ज्ञाताधर्मकथा के प्रथम अध्ययन और अन्य ग्रन्थों में विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। ___अभयकुमार प्रबल प्रतिभा का धनी था। जैन और बौद्ध दोनों परम्परा उसे अपना अनुयायी मानती हैं । जैन आगम साहित्य के अनुसार वह भगवान महावीर के पास आहती दीक्षा स्वीकार करता है और त्रिपिटक साहित्य के अनुसार भगवान बुद्ध के पास दीक्षित होता है। जैन साहित्य के अनुसार अभयकुमार श्रेणिक की नन्दा रानी का पुत्र था । ज्ञाताधर्मकथा में वर्णित है कि अभयकुमार साम, दाम, दण्ड, भेद, उपप्रदान और व्यापार नीति में निष्णात थे । ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा और अर्थशास्त्र में कुशल थे। वे चारों प्रकार की बुद्धियों के धनी थे। वे श्रेणिक राजा के प्रत्येक कार्य के लिए सच्चे परामर्शक थे । वे राज्यधुरा को धारणा करने वाले थे। वे राज्य (शासन) राष्ट्र (देश), कोष, कोठार (अन्नभण्डार), सेना वाहन, नगर और अन्तःपुर की अच्छी तरह देखभाल करते थे।३४ खण्ड २२, अंक ४ २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy