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________________ २१२९,२१३१,२१३७,२१४१,२१४३,२१५३,२१६१,२१७९ २२०१ से २३०० तक की संख्याओं में १६ संख्याएं रूढ़ हैं - २२०१,२२०३, २२०७,२२१३,२२२१,२२३७,२२३९,२२४३, २२५१,२२६७, २२६९,२२७३,२२८१, २२८७,२२९३,२२९७ २३०१ से २४०० तक की संख्याओं में १५ संख्याएं रूढ़ हैं- २३०९,२३११, २३३३,२३३९,२३४१,२३४७,२३५१,२३५७, २३७१, २३७७,२३८१, २३८३,२३८९, २३९३,२३९९ २४०१ से २५०० तक की संख्याओं में १० संख्याएं रूढ़ हैं - २४११,२४१७, २४२३,२४३७,३४४१,२४४७, २४५९,२४६७, २४७३, २४७७ इस प्रकार कुल ३७० संख्याएं रूढ़ हैं । २. गुणा प्रचीनकाल में पहाडे सिखाए जाते थे उनके माध्यम से विद्यार्थी मौखिक गुणा कर लेते थे । आज के विद्यार्थी लिखकर भी बडे गुणा नहीं कर पाते। मुनि हनुमानमल ने ७६ अंकों का गुणनफल निकाला है और ३८-३८ अंकों की संख्याओं को गुणा किया है । ३८-३८ अंकों की दोनों संख्याएं और गुणनफल इस प्रकार है-८५०७०५९१७३०२३४६१५८६५८४३६५१८५७९४२०५२८६४× ८५०७०५९१७३०२३४६१ ५८६५८४३६५१८५७९४२०५२८६४ = ७२३७००५५७७३३२२६२२१३९७३१८६५६३०४२९९४२४०८२९३७४०४१६०२५३५२५२४६६०९९०००४९४५७०६०२४९६ यह ७६ अंकों का गुणनफल मौखिक गुणा करके निकाला गया है । इसका प्रमाण उस पत्रक पर अंकित है जिस पर यह गणित किया गया है। दोनों गुणन संख्याओं की साईड में गुफनफल के प्रत्येक अंक की हाथपाई लिखी हुई है और प्रत्येक १० अंकों की हाथपाई के लिए संकेत दिया हुआ है । मैसूर में मैंने भी एक अवधान का प्रयोग किया था जिसमें नौ अंकों को नौ अंकों से गुणा करना था । एक प्रश्नकर्ता के प्रश्न के उत्तर में ऐसा प्रयोग किया था । उस अवधान प्रयोग में प्रत्येक अंक को प्रत्येक अंक से गुणा कर उनकी हाथ पाई को याद रखकर १८ अंकों का गुणनफल बताया था। वह स्मृति और गणित का संयुक्त चमत्कार था । ३. वर्ष मास तिथि वार परिवर्तन प्रयोग किया था । अवधान प्रयोग से किसी भी ईसवी सन् मास और तारीख के आधार पर वार बताया जा सकता है। मुनि हनुमानमलजी ने भी अवधान का इसलिए वार बताना उनके लिए सरल था । तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में जो जो घटनाएं घटीं उनका विक्रम संवत्, मास और तिथि के रूप में उल्लेख मिलता है । मुनिश्री ने उनके विक्रम संवत्, मास और तिथि को ईसवी सन् मास और तारीख में परिवर्तित किया है ! इस प्रकार तेरापंथ धर्म महासंघ के इतिहास की बनेकों घटनाओं का मुनिश्री ने वैक्रम संवत्सर से ईसवी संवत्सर में परिवर्तन कर खण्ड - २२, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only २७ www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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