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________________ श्रुति अनुसार यज्ञ कर्म कराता और देवता यजन होता था । संभवत: इसीलिये कुरुक्षेत्र को देवयजन का स्थान कहा जाता था। १३ महाभारत युद्ध पश्चात् बहुत समय तक यहां पाण्डव वंशजों का राज्य रहा। बौद्ध जातकों के अनुसार यहां युधिष्ठिर गोत्रीय कौरव्यों का राज्य था। भविष्य पुराण के अनुसार कलियुग के दो हजार वर्ष बीतने तक सारस्वत क्षेत्र में म्लेच्छों का प्रवेश नहीं हो पाया था ।१५ वट लौंग काउ प्रशस्ति का लेखापयिता राजा देवानीक भी यहां के कौरव्य राजा धनंजय, इन्द्रद्युम्न आदि को अपना आदर्श मानता है। मनु ने भी कुरूक्षेत्र, मत्स्य, पांचाल और शूरसेनक क्षेत्रों के छोटे-बड़े सभी क्षत्रियों को लडाकू होने से सेना के अग्रभाग में रखने की व्यवस्था दी है। प्रशस्ति का मूल पाठ पंक्ति (१)-- पंक्ति (२) (पाठ अस्पष्ट पंक्ति (३)-- हो गया है।) पंक्ति (४)----- पंक्ति (५) ये वसन्ति महातीर्थे, तत्र च ये मृताः नराः । स्तवनं ये च कुर्वन्ति, तत् फलं प्राप्नुवन्ति ते ।। (६) यत्तत् पुण्योपमफलं, प्रभासादिपुराकृतेः । देवानीकाख्य देवात्र, भवतु धृतमद्य मे ॥ " (७) ये देवा यज्ञमात्रार्थभागतारोहिता दिवि । ब्रह्मोपेन्द्रेश्वराद्यास्ते तन्नाम प्रदशिन्तु वै ।। इत्येवमादि प्रणिधी, राज्ञश्चिन्तयतस्तदा । नामगतं कुरूक्षेत्र, (पुण्यप्रा) प्यफलैस्समम् । (९) यत् पूर्वाभिहितं स्वयं, फल देवर्षिकीतितं । कुरूक्षेत्र तदेवास्तु, कुरूक्षेत्र नवोथ्थित्ते ।। " (१०) ऋषिणा कुरूणापूर्व, (कष्ट) क्षेत्रीकृतं सतां । तस्मादिति कुरूक्षेत्रं, ख्यातं तीर्थ महाफलम् ।। " (११) तत्रैवापि कुरूक्षेत्रे, वासुना समुदीरिताः । महादुष्कृतकणिं, नयन्ति परमां गतिम् ।। " (१२) कुरूक्षेत्रं गमिष्यामि, कुरूक्षेत्रे व्यासाम्यहम् । ये वसन्ति कुरूक्षेत्रे , ते वसन्ति त्रिविष्टपे । " (१३) पृथिव्यां नैमिषं पुण्यमन्तरीक्षे तु पुष्करम् । नृपानामपिलोकानां, कुरूक्षेत्रं विशिष्यते ।। " (१४) तन्नाम कीर्तनेनापि, केन ह्यासण्वतं कुलम् । किं पुनर्येतु सेवन्ते, मनुजा धर्म बुद्धयः ।। " (१५) अश्वमेधसहस्रस्य, वाजपेय शतस्य च । गवां शत सहस्रस्य, सम्यग्दत्तस्य यत्फलम् ॥ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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