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________________ होता है । पुनः एक दिन पातालकेतु का अनुज तालके तु मुनिरूप में आकर मदालसा से कहता है --- महाराज ऋतुध्वज असुरों का संहार करते स्वयं परलोक सिधार चके हैं, साक्ष्य स्वरूप एक कंठाभूषण दिखाता है। पति विरह में मदालसा अपने प्राणों का त्याग कर देती है। मदालसा के वियोग में राजा ऋतध्वज घोर तपस्या करता है। तप के प्रभाव से मदालसा पुनर्जीवित हो जाती है । राजा ऋतुध्वज अपनी प्रणयिनी को पाकर अत्यन्त आनन्दित होते है तथा सांसारिक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं। गन्धर्बराज की कन्या होने के कारण मदालसा का रूप सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक है। परिणामस्वरूप शत्रुजित के पुत्र ऋतुध्वज उसके प्रति अनुरक्त होते हैं और दोनों का प्रेम-विवाह होता है । वर्णन अनुसार मदालसा में सम्पूर्ण षोडश कलायें विद्यमान ___ मार्कण्डेय पुराण में मदालसा विदुषी महिला के रूप में उल्लिखित हुई हैं। उसे वेदान्त एवं उपनिषद दर्शन का सम्पूर्ण ज्ञान है । पुत्रों के जन्म लेते ही वह उन्हें आत्मबोध का पाठ सिखाना आरम्भ कर देती है। शिशुकाल में ही प्रथम पुत्र विक्रान्त को मदालसा ने दर्शन की शिक्षा देना प्रारम्भ कर दिया । यह पन्चभूतात्मक शरीर निश्चित ही नश्वर है। पृथ्वी, जल, तेज, वाय. आकाश, पन्चभूत कहे गये हैं । अत: यह नश्वर शरीर तुम्हारा नहीं है, तुम्हारी इन्द्रियां अनेक विषय भोगों में लिप्त है। यह नश्वर शरीर आच्छादन मात्र है। जो समय परिवर्तन के साथ-साथ जीर्ण-शीर्ण हो जाता है।" इस नश्वर जगत में मनुष्य अकेला ही जन्मलेता है और अन्तत: एकाकी ही रहता है अर्थात् माता-पिता, भाई-बन्धु सब मिथ्या है । माया का प्रसार मात्र है, मन्दबुद्धि ही भोगों को सुख का कारण मानते हैं । पुनः प्रारब्ध से एकत्रित कर्मों को लेकर इस माया रूपी भंवर में घूमते हैं । अविद्या से ग्रस्त मोहाच्छन्न चित्त पुरुष ही दुःख को सुख समझते हैं। ___इस प्रकार पुत्र को उत्सङ्ग से ही इसने आत्मज्ञान प्रदान किया फलस्वरूप पुत्र 'विक्रान्त' गार्हस्थ्य कर्मों से विमुख होकर वैरागी बन गया। दूसरे पुत्र के उत्पन्न होने पर राजा द्वारा उसका नामकरण संस्कार किया गया। वह 'सुबाहु' संज्ञा द्वारा संजित किया गया। इसे भी मदालसा द्वारा आत्मज्ञान दिया गया। __ अनन्तर तृतीय पुत्र के जन्मोत्सव पर उसका नाम 'शत्रुमर्दन' रखा गया। बाल्यकाल से ही प्रदत्त आत्मज्ञान के वशीभूत होकर यह पुत्र भी निप्काम व क्रियाहीन हुआ। पुन: चौथे पुत्र के जन्म ग्रहण करने पर पति के अनुरोध से मदालसा स्वयं ही उसका नाम 'अलर्क' रखती है। असंबद्ध नाम सुन, पति के प्रश्न करने पर पुनः मदालसा कहती है। नामकरण लोकाचार व कल्पना मात्र है। आत्मा तो सर्वव्यापी है । श्रीमद्भगवतगीता में उल्लेख मिलता है, आत्मा अमर है, अजर है। वह न मरती है तथा न मारी जाती है। तीसरे पुत्र शत्रुमर्दन के विषय में मदालसा पति से कहती है-आत्मा तो समस्त शरीरों में विराजमान है, उसका शत्रु व मित्र कोई नहीं है । ३१८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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