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________________ द--ददा या दीवटो मूल - दर्शन समकित रूप दीवो हिरदे रुप घर मे करी राखजे । बली दया दान री अभिलाख धरजे ||३३|| हिंदी - दर्शन सम्यक्त्व रूप दीपक हृदयरूपी घर में जला कर रखना और दया दान की अभिलाषा रखना । प्रतिपाद्य सम्यक्त्व के ५ प्रकार हैं । पीछे अ, आ वर्ण में वर्णित है । दान - 'संयमोपवर्धकं निरवद्यम् ।' जिस दान से अपना या पर का संयम पुष्ट होता है उसे निरवद्य दान कहते हैं । ( जैन सिद्धांत दीपिका ९ । १७ ) वया -'पापाचरणादात्मरक्षा दया ।' पापमय आचरणों से अपनी या दूसरे की आत्मा को बचाना दया है । ( जैन सिद्धांतदीपिका ९1१ ) सम्यक्त्व की अराधना, पाप के आचरण से आत्मा की रक्षा और दूसरों के आत्म विकास में सहयोग की इच्छा मोक्ष की आराधना में बहुत सहायक होती है । ध-धधोयो धानरो मूल - तू धन कमावा नो परीग्रह मेलवा नो ध्यान राखीस मा । केवल एक धर्म नां ध्यान हिया मां राखजे ||३४|| हिंदी - तू धन अर्जन करना और परिग्रह संग्रह करना इनका ध्यान मत रखना । केवल एक धर्म का ध्यान ही हृदय में रखना । प्रतिपाद्य - परिग्रह के पांच प्रकार हैं ३०८ (१) क्षेत्र वास्तु (घर) (२) सोना, चांदी रत्न आदि (३) धन, धान्य (४) पशु, पक्षी आदि (५) कुप्य - तांबा, पीतल आदि धातु तथा अन्य गृह सामग्री यान, वाहन आदि । इनके संग्रह में ही ध्यान मत रखना । धर्म ध्यान करना । न-ननीयो पोलाइडो मूल - नास्तिकमत अंगीकार करी ने हिया माहि थी समकितमा पोल राचीस - मा । हिंदी - नास्तिक की मान्यता स्वीकार कर हृदय में थोथापन मत रखना । प्रतिपाद्य नास्तिक की मान्यता णत्थि ण णिच्चो ण कुणइ कयं ण वेएइ णत्थि णिव्वाणं णत्थि य मोक्खोवाओ छम्मितस्स ठाणाई || ५४ ॥ आत्मा नहीं है, वह नित्य नहीं है, वह कुछ करता नहीं है । वह किये कर्म का तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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