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________________ पीड़ित था, दुःखी था । उस दुःख के चक्र से मुक्त होने के लिए बुद्ध ने चार आर्य सत्यों का विवेचन किया और उस सत्य प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग का प्रतिपादन किया । जैन परंपरा में 'व्रत' सर्वोपरि हैं। यहां आचार, आहार और सम्पूर्ण जीवन शैली ही व्रतों पर आधारित है । व्रतों से ही संयम और अहिंसा का पोषण होता है । लिये जैन वाङ्मय का 'व्रत' ही मेरूदण्ड है । इस व्रत या महाव्रत का प्रारम्भ कब हुआ ? इस प्रश्न का उत्तर इतिहास के पृष्ठों पर देखें तो 'पंच महाव्रतों' का बीज हमें आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभ के युग में प्राप्त हो जाता है । वेद, उपनिषद, पुराण, आरण्यक, ब्राह्मणग्रंथों में भी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का स्वरूप किसी न किसी रूप में उल्लिखत है । मत्स्य पुराण में कहा है 'मुनिव्रतमहिंसादि परिगृह्य त्वया कृतम्' अर्थात् मुनि को साधना के लिए अहिंसादि व्रत का स्वीकरण करना चाहिए ।" बुद्ध ने भी बुद्धत्व प्राप्ति के लिए अष्टांगिक मार्ग व दस शीलों का निर्देश दिया । भगवान् ऋषभ ने साधनामय जीवन का प्रारम्भ पांच महाव्रतों से किया । ऋषभ के पश्चात् भगवान् पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म का प्रवर्तन किया और भगवान महावीर ने पञ्च महाव्रतात्मक धर्म का प्रवर्तन किया। यहां 'पंच महाव्रतों' पर एक संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जा रहा है१. अहिंसा महाव्रत महाव्रतों में सर्वप्रथम अहिंसा को स्थान दिया गया है । 'न हिंसा अहिंसा'जीवों का अतिपात न करना अहिंसा है । अहिंसा परम धर्म है । मूल गुण है । उसे अन्य महाव्रतों की अपेक्षा विशिष्ट स्थान प्राप्त है । ऋग्वेद में 'अहिंसन्ती" श द अहिंसा का वाचक है । यजुर्वेद में मनुष्य और जंगम पशुओं की हिंसा करने का निषेध है । हिंसा निषेध का मतलब है - व्यक्ति को अहिंसक होना चाहिए । उपनिषदों के दशयमों में अहिंसा शब्द है ।" रामायण और महाभारत काव्यों में अहिंसा को परम धर्म माना है । महाभारत के आदि पर्व में कहा अहिंसा परमो धर्मः सर्व प्राणभृतांवरः । - मनु ने लिखा है – अहिंसक व्यक्ति मुक्ति के योग्य होता हैइन्द्रियाणां निरोधेन रागद्वेष क्षयेण च । अहिंसया च भूतानाममृतत्वाय कल्पते ॥ इसी प्रकार मनु ने एक स्थान पर और लिखा है— अहिंसयेन्द्रियासङ्ग वैदिकैश्चैव कर्मभिः " वायु पुराण, अग्नि पुराण, मत्स्य पुराणादि में भी अहिंसा शब्द का उल्लेख मिलता है ।" वहां मुनि के व्रत के रूप में ग्रहण है । कहीं-कहीं यम के रूप में भी विवेचित है | पतंजलि ने कहा जब जीवन में अहिंसा प्रतिष्ठित हो जाती हैं तब व्यक्ति की सब जीवों के प्रति मंत्री की भावना स्थापित होती है । बौद्धों में आर्य वही कहलाता है जो अहिंसक होता है २८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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