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________________ पू० का परवर्ती नहीं हो सकता। शकों के विरुद्ध सगर के पुराणोक्त अभियान के बाद भी कुछ शक भारत में रह गये थे। अन्ध्रकाल में या उसके बाद उनका सिर उठाना पूर्णतः सम्भव था। इसके लिए न तो १२० ई० पू० के बाद जाना आवश्यक है न नवीं शती ई० पू० के बाद । संदर्भ-सूची १. पाजिटर, दि पुराण टेक्स्ट ऑफ दि डाइनेस्टीज ऑफ दि कलि एज, लन्दन, १९१३, पृ० ३३-३४ २. बाणभट्ट, हर्षचरितम्, षष्ठ उच्छ्वास (जीवानन्द विद्यासागर सम्पादित, __ कलकत्ता) ३. के० एच० ध्रुव, दि हिस्टोरिकल कन्टेन्ट्स ऑफ युगपुराण, जे० बी० ओ० आर० एस०, खण्ड १६, भाग १, पृ० ४० ४. उपेन्द्रनाथ राय, मगध का मौर्य शासक शालिशूक, तुलसी-प्रज्ञा, खण्ड १९, अंक २, पृ० १३६-१३९ ५. उपेन्द्रनाथ राय, मगध का शिशुनाग वंश, समाज धर्म एवं दर्शन, वर्ष ११, अंक १, पृ० १३-२२ ६. के० एच० ध्रुव, पूर्वोक्त, पृ० २१ ७ के० एच० ध्रुव, पूर्वोक्त, पृ० २१ ८. के० एच० ध्रुव, पूर्वोक्त, पृ० २१ ९. के० एच० ध्रुव, पूर्वोक्त, पृ० २२ १०. डॉ० श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी (सं०), युगपुराणम्, वाराणसी, १९७५, पृ० १३ ११. डॉ० बुद्धप्रकाश, महाभारत-एक ऐतिहासिक अध्ययन-२, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ६२, अंक ४, पृ० २८१-२८२ १२. विष्णुपुराण, ४॥३; वायु० अध्याय ८८, ब्रह्माण्ड अध्याय ६३ १३. मनुस्मृति, २०१४३-४४ १४. वासुदेवशरण अग्रवाल, पाणिनिकालीन भारतवर्ष, द्वितीय संस्करण, वाराणसी, पृ० ८२ ----गांव : मटेली जलपाईगुड़ी (बंगाल) बंर २१, बंक ३ २७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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