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________________ जैन दर्शन में शांति की अवधारणा Cडॉ० सुरेन्द्र शर्मा धर्म और दर्शन में शांति का प्रत्यय बड़ा प्राचीन है । न केवल हिंदू धर्म में बल्कि अन्य भारतीय धर्मों में भी शांति के लिए कामना की गई है । वेदों में शांति स्तुति के लिए कई मंत्र मिलते हैं । जैन दर्शन में यद्यपि शांति की व्याख्या या उसके स्वरूप और उसमें निहितार्थ भावों का वर्णन हमें बहुत स्पष्ट रूप से नहीं मिलता किन्तु यदि उसकी आचरण-संहिताओं का पालन किया जाए तो वे सभी निश्चित रूप से हमें शान्ति के मूल्य की ओर ही अग्रसर करती प्रतीत होती हैं। सभी जैन धर्म-ग्रन्थ (आगम साहित्य) प्राकृत में ही रचे गए हैं । प्राकृत भाषा में शांति के लिए 'संति' शब्द का प्रयोग हुआ है । प्राकृत हिदी कोश' के अनुसार 'संति' के कई अर्थ हैं । निम्नलिखित पांच महत्त्वपूर्ण हैं १. 'क्रोध आदि का उपशमन' २. 'मुक्ति ' ३. 'अहिंसा' ४. 'उपद्रव निवारण' ५. 'विषयों से मन को रोकना' जैन दर्शन में 'संति' के उपरोक्त सभी अर्थ अपनाए गए हैं किन्तु यदि हम इन अर्थों का सूक्ष्म निरीक्षण करें तो इनमें मूलतः 'मुक्ति' का अर्थ ही प्रकट होता है। शान्ति क्रोध से, हिंसा से, उपद्रव से, और विषयों से मुक्ति है। . जैन दर्शन में आत्मा की साम्य/शान्त अवस्था के लिए क्रोध आदि कषायों के उपशमन पर विशेष बल दिया गया है । क्रोधादि चार कषाय माने गए हैं-क्रोध, मान, माया और मोह । इनमें से क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, माया मैत्री को नष्ट करती है, मान विनय को समाप्त करता है और लोभ सर्वविनाशी है । अतः इन सभी कषायों पर विजय प्राप्त करना स्वयं मनुष्य के अपने हित में है। जैन दर्शन के अनुसार क्रोध, मान, माया और लोभ को क्रमशः क्षमा, मार्दव, आर्जव और संतोष से वश में किया जा सकता है। जब तक इन कषायों का उपशमन नहीं होता, व्यक्ति स्वयं अपने 'स्व' में अवस्थित नहीं हो सकता और न ही शांति प्राप्त कर सकता है। ... व्यक्ति का परम पुरुषार्थ मोक्ष माना गया है । मोक्ष का अर्थ अन्ततः जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति है । मोक्ष एक ऐसी अवस्था है जो सभी प्रकार के द्वंद्वों और संघर्षों से परे है और इसलिए यह स्वभावत: परम शान्ति की अवस्था है । इसे निर्वाण भी .. खण्ड २१, अंक ३ २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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