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यही वर्ण जब दूसरे वर्ण के सहयोग से पदार्थ को समझाने हेतु संघटित होता है तो उसे पद कहते हैं । प्रत्येक वर्ण का निरपेक्ष अर्थ होता है पर पद का अर्थ सापेक्ष निरपेक्ष दोनों होता है । यही पद एवं उसकी ध्वनि मंत्र शास्त्र का प्राण भी है क्योंकि यही ध्वनि प्राण वायु को लेकर मनुष्य के चारों ओर एक निर्माण करती है जिसके अनुसार संसार परिणमित होता है । भाषा में तदाकार वृत्ति कहते हैं एवं इसकी प्राप्ति 'ॐ नमः सिद्धस्' की उपासना से आसानी से हो सकती है।
तरंग माला का इसे दार्शनिक
खंड २१, अंक ३
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150,
शांतिनगर, सिरोही
२४३
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