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कामी के हृदय में सदा काम उभरता है, लोभी के हृदय में सदा दाम उभरता है। कौन करता है याद कभी सुख में प्रभु कोदुःखी के हृदय में सदा राम उभरता है ।।
कीचड़ में भी कमल खिलता है, पत्थर में भी रत्न मिलता है। अद्भुत कलाएं हैं कुदरत कीव्यथित-सागर अमृत उगलता है ।।
प्याले के पानी को दो विष की बूंदें विष और अमृत की बूंदें अमृत बना देती हैं, पर समुद्र के पानी पर न किसी विष का असर होता है और न अमृत का । उसका स्वभाव किसी भी परिस्थिति में नहीं टूटता।।
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फैलाव का अर्थ है आक्रमण। कुछ भी बढ़ेगा तो वह दूसरों को हथियेगा । जल प्रवाह बढ़ता है तो वह आगे से आगे भूमि पर आक्रमण करता चला जाता है। व्यक्ति बढ़ता है तो वह पदार्थों, वस्तुओं और मनुष्यों पर अधिकार जमाते चला जाता है। ६. सिंघई संतोषकुमार जैन द्वारा भेजे प्रकाशन-'ज्ञान का विद्यासगर' 'द्रव्यसंग्रह', 'नागफनी द्वारेद्वारे', 'अनाश्रिता', 'तेरी महिमा मेरे गीत' इत्यादि ।
__ ये प्रकाशन आचार्यप्रवर श्री विद्यासागरजी महाराज के आम्नाय में रचित एवं प्रकाशित कृतियां हैं । ज्ञान का विद्यासागर श्री नेमचन्द जैन, पुरानागंज, सिकन्दराबाद द्वारा प्रकाशित विद्यासागरजी महाराज द्वारा लिखित एवं अनुवादित कतिपय रचनाओं का संकलन है जो सन् १९८३ में छप गया था। मूल रूप में प्रकाशित इन रचनाओं का अपना महत्त्व है।
द्रव्य संग्रह में आचार्थश्री नेमिचन्द विरचित मूल पाठ के अलावा संस्कृत छाया, हिन्दी पद्यानुवाद, गुर्जर अन्वयार्थ तथा हिन्दी गाथार्थ व अंग्रेजी भावार्थ दिया गया है। श्री परिमल किशोर भाई खंधार द्वारा संकलित यह प्रकाशन श्रीमती समताबेन खंधार चेरिटेबल ट्रस्ट, अहमदाबाद-५२ द्वारा प्रकाशित है और द्रव्य संग्रह के सांगोपांग अध्ययन के लिए अनूठा सोपान बन गया है। अन्त में विद्यावाणी- शीर्षक से कुछ उक्तियां संग्रहीत की गई हैं जो नाविक के तीरों की तरह सारगभित हैं। ___'नागफनी द्वारे द्वारे' और अनाश्रिता'-- ऐलक सम्यक्त्व सागर की दो गद्य रचनाएं हैं । प्रथम, जैन वीर सेवा दल, झांसी तथा दूसरी 'अनाश्रिता', अनुदिश प्रकाशन, झांसी की प्रस्तुतियां हैं। 'नागफनी द्वारे द्वारे' में विचारोत्तेजक सामाजिक कहानियां हैं जो बरबस पाठक के अन्तःस्थल को झकझोर देती है और नागफनी की तरह तीखे कांटे चुभाती है । 'अनाश्रिता' में सुप्रसिद्ध जैन कथानक को लेकर मनोरमा
खण्ड २१, अंक ३
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