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________________ एक पाथेय प्रस्तुत किया है ।' - यह कथन प्रस्तुत संग्रह के लिए सर्वथा सटीक है क्योंकि 'जैन मेडिटेशन' में जैनयोग के शताधिक ग्रन्थों की सूची दी हुई है और जैनयोग केवल ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः न होकर 'मनोवाक्काय गुप्तिर्योगः' कहा जाना चाहिए । प्रस्तुत संग्रह में 'आवश्यक निर्युक्ति' का कायोत्सर्गप्रकरण और ध्यानशतक, योगशतक, समाधिशतक, इष्टोपदेश, स्वरूप सम्बोधन तथा ज्ञानसार चयनिका प्रकाशित है । मुनिश्री का हिन्दी अनुवाद सारग्राही होने के साथ-साथ रोचक ढंग से किया गया है । आवश्यकतानुसार टिप्पणियां भी दे दी गई हैं । विशेषतः 'कायोत्सर्ग प्रकरण' में ऐसी टिप्पणियां अधिक हैं जैसे गाथा ६१ और ६७ में कायोत्सर्ग से काल-प्रमाण जाने के सम्बन्ध में आवश्यक भाष्य की दो-दो गाथाएं और उद्धृत की गई हैं। सर्वांश में यह संग्रह आचार्य जिनभद्र गणि से उपाध्याय यशोविजय तक जैनयोग के विकास का अध्ययन करने के लिए परम उपयोगी संग्रह बन गया है । ३. योग की प्रथम किरण - लेखिका : साध्वीश्री राजीमती । प्रकाशक- पन्नालाल बांठिया, प्रज्ञा प्रकाशन, २०५४, हल्दियों का रास्ता, जौहरी बाजार, जयपुर-३ । द्वितीय संस्करण - १९९५ । मूल्य -- ४० रुपये । प्रस्तुत कृति में शरीर रचना क्रम की पूर्णता के निमित्त पर्याप्तियोगः की एक नयी चिन्तनधारा का विवेचन है । यह जैन साधना पद्धति कही जा सकती है जिसका व्यवस्थित रूप गुरुदेव श्री तुलसी की अमर कृति 'मनोनुशासनम्' में उपलब्ध होता है । साध्वी राजीमती ने अपनी कृति में शरीर के छओं शक्ति संस्थान -- आयुष्य, कायबल, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, वचन और मन की शुद्धि के लिए पृथक्-पृथक् पर्याप्तियोगः : बताए हैं । लगता है, इन पर्याप्तियोगों को लेखबद्ध करने से पहले साध्वीश्री ने जांचापरखा है और स्वयं अनुभूत भी किया है। उनका लेखन बहुत संयमित पर अपनी बात कहने में पूर्ण सक्षम दीख पड़ता है । रोचकता भी लगातार उदाहरण अधिक नहीं हैं । लेखिका का कहना यह है कि शक्तियां हैं । उन्हें कम न करके व्यक्ति को उनकी क्षमताएं योगों के प्रयोग से बढ़ सकती है । ४-५. सुगंध समय की मुनिश्री मोहनलाल 'शार्दूल', प्रकाशक - - आदर्श साहित्य संघ, चूरू । मूल्य – १५ रुपये । सरोवर की लहरें - मुनि श्री मोहनलाल 'शार्दूल', प्रकाशक - के० जैन पब्लिशर्स, ४२९, हिरनमगरी, उदयपुर । मूल्य१५ रुपये । बनी रहती है, हालांकि प्रत्येक व्यक्ति के पास मूल बढ़ानी चाहिए जो पर्याप्ति प्रस्तुत कृतियां मुनिश्री मोहनलाल 'शार्दूल' की पद्य गद्य रचनाएं हैं। सुगंध समय की - मुक्तकों का संग्रह है और सरोवर की लहरें- लघु गद्य किं वा परिसंवादों का संकलन हैं । कुछएक नमूने देखिए - ३४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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