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विधियों का प्रयोग किया जाता है
१. व्यक्तियों को बाह्य प्रभाव में रखकर उनमें होने वाले परिवर्तनों का
अध्ययन-इस विधि में व्यक्तियों के किसी समूह का अभिवृत्ति परीक्षण लिया जाता है, तत्पश्चात् समूह को एक विशेष प्रकार का अनुभव कराने के पश्चात् पुनः अभिवृत्ति परीक्षण किया जाता है। दोनों परीक्षणों के परिणामों में अन्तर अभिवृत्ति परिवर्तन को दर्शाता है। २. अन्योन्यक्रिया विधि- इस विधि के अनुसार व्यक्ति को जिस तरह की
अभिवृत्ति का निर्माण चाहते हैं, उसके अनुकूल सामाजिक परिवेश में रखा जाता है ताकि उसे अन्योन्यक्रिया करने का अवसर मिल सके। ३. समूह परिचर्चा परिचर्चा पद्धति में व्यक्ति की सक्रिय सहभागिता के कारण वह व्यक्तिगत रूप से उसके प्रति अनुरक्त हो जाता है तथा व्यक्तिगत निश्चय की अपेक्षा समूह निर्णय अनिवार्य रूप से पालनीय होते हैं। अभिवृत्ति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने के लिए यह आवश्यक है कि वैयक्तिक अहंमन्यता को सन्निहित किया जाए। ऐसा वैयक्तिक आवेष्टन सामाजिक स्तर पर परस्पर क्रिया-प्रक्रिया के आदान-प्रदान द्वारा बढ़ता है। परिणामस्वरूप
अभिवृत्ति परिवर्तन भी समूह के प्रतिमानों के अनुकूल ही होता है। ४. भावनात्मक अपील-इस विधि में समूह के प्रतिमानों को ध्यान में रखकर
उनके निर्माण में व्यक्ति के योगदान को बताकर उसके भावों को उभारा जाता है।
उपर्युक्त विधियों द्वारा हम किसी विषय या समस्या के प्रति व्यक्ति के दृष्टिकोण में परिवर्तन कर सकते हैं अर्थात् जो व्यक्ति पहले जिस समस्या या विषय के प्रतिकूल थे, उनके सम्बन्ध में अब वे अनुकूल अभिवृत्ति वाले होने लगते हैं । संघर्ष निराकरण की निधियां
शांतिपूर्ण समाधान या कलह-शमन की दृष्टि से हिंसा या कान पर आधारित तरीकों को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे स्थायी समाधान प्रदान नहीं करते । हिंसा या कानून का समाधान स्वैच्छिक नहीं, दबाव द्वारा स्वीकृत होता है। वार्ता, सामूहिक सौदेबाजी एवं संधियां आदि भी कलह शामन के लिए प्रयुक्त होती है पर ये भी उपयोगितावादी होने के कारण नैतिक कि नहीं रखते । गांधीजी की दृष्टि में हृदय परिवर्तन या नैतिक शक्ति द्वारा किया प्या समाधान ही , होगा। मूलतः किसी भी विधि की उपयुक्तता का आकलन इस अधार पर किया
जा सकता है कि निराकरण के पश्चात् दोनों पक्षों के बीच सम्बन्ध से रहेंगे ? प्रो० गाल्टंग ने कलह शमन हेतु गांधीवादी विधियों के चार आधार प्रस्तुत किये हैं१. संघर्ष या संघर्षरत पक्ष से अलग हो जाना
संघर्ष निराकरण हेतु हमारा प्रथम प्रयास यह हो कि हम उससे अलग हो जाएं । असहयोग, अवज्ञा, सत्याग्रह आदि सम्बन्ध विच्छेद के उदाह श हैं । सामाजिक, बंर २१, अंक २
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