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भारतीय संस्कृति में अभी तक वैवाहिक सम्बन्धों को स्थापित करने के लिये माता-पिता या अपने सगे सम्बन्धी ही आधार बने हुए हैं। माता-पिता अपने पुत्र-पुत्री से होने वाले पति-पत्नी के विषय में पूछते अवश्य हैं और उनकी 'हां' पर ही आगे की बातचीत बढ़ाते हैं । किन्तु और अन्य सभी बातों के निर्णय प्राय: माता-पिता ही लेते हैं । इस विषय में सबसे पहले इस बात का ध्यान रखा जाये कि लड़के-लड़की का मैच मिलता है या नहीं। जैसे कद, शारीरिक सौन्दर्य, स्वास्थ्य, रंग-रूप और शारीरिक आकर्षण । इन पक्षों की किसी विशेष सीमा तक ही उपेक्षा की जा सकती है और वह भी लड़के-लड़की की इच्छा को जानकर और उनकी सहमति से । किन्तु किसी लालच वश लड़के-लड़की में अधिक भिन्नता होने पर विवाह कर दिया जाता है तो कुछ समय के बाद ही दोनों में एक-दूसरे के प्रति समायोजन-हेतु जो भावनाएं होनी चाहिये वह धीरे-धीरे कम हो जाती हैं और फिर स्थिति विषम बनती चली जाती है। इसलिये शारीरिक दृष्टि से मैच का मिलना अति आवश्यक है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात है परिवार या खानदान । प्रायः पुरानी पीढ़ी के लोगों को आपने यह कहते सुना होगा कि अमुख खानदान बड़ा प्रसिद्ध, श्रेष्ठ और भले लोगों का है, आज गरीब हो गये हैं तो क्या । हम तो अच्छे खानदान की लड़की चाहते हैं और सबकी हमें चिन्ता नहीं है । पुराने लोगों के इस विचार में बड़ा सार है। खानदान अच्छे होने का तात्पर्य है, उस परिवार के बच्चों का चरित्र, मानसिकता, चिन्तन, समायोजन की क्षमता, अपने पराये का भेद, सहानुभूति, प्रेम, शिष्टाचार, मर्यादा तथा मान-सम्मान की भावना । ये सब चरित्र के गुण हैं जो व्यक्तित्व के विकास में एक अहम भूमिका निभाते हैं। संतुलित व्यक्तित्व के लड़के-लड़कियों के वैवाहिक सम्बन्धों में सहनशीलता, धैर्य और समझने की क्षमता होती है। वंशानुक्रम एक महत्त्वपूर्ण आधार है जिसे नकारा नहीं जा सकता है । एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में गुणों का हस्तानान्तरण होता है। ये हस्तान्तरण और परिवारजनों के व्यवहार से सीखना ही परिपक्वता पर तथा लड़के-लड़की की अहमियत पर पूरा प्रभाव डालता है। इसलिये जब अच्छे खानदान के लड़के-लड़की विवाहसूत्र में बंध जाते हैं तो एक दूसरे के साथ बड़ी आसानी से निर्वाह करते रहते हैं।
तीसरी बात है आयु का ताल-मेल । एक आयु विशेष में ही लड़के-लड़की का विवाह होना चाहिये तथा उनकी आयु में जो अन्तर है वह एक सीमा तक पटनाबढ़ना चाहिये । उदाहरण के लिये, विवाह के समय यदि लड़के की आयु २५ वर्ष से तीस वर्ष के बीच में है और लड़की की आयु २० वर्ष से २५ वर्ष के बीच में है तो यह समागम शारीरिक-क्षमता, और मानसिक-चाह या काम-प्रेरणा की दृष्टि से सर्वोत्तम है। किन्तु लड़के की आयु ३० वर्ष को पार कर गई है और लड़की भी ३० के लगभग पहुंच रही है तो फिर इच्छाएं अपने सामान्य-बिन्दु से हटकर स्वतः नहीं बल्कि चाहने पर क्रियाशील होती हैं । इसी प्रकार यदि लड़के-लड़की में आयु का अन्तर बहुत अधिक है या बहुत कम है तो एक बुढ़ापे में प्रवेश करता है और दूसरे को जवानी का सफर तय करने को बहुत समय शेष रह जाता है, इसी प्रकार जब आयु अन्तर बहुत कम होता १८२
तुमसी प्रज्ञा
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