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________________ कारः कर कारस्करः पारः पर नौं पेष । पारस्परः, भा: कर तणौ भास्कर रवि संपेष ॥१०॥ राजः त्वंदं राजस्त्वंद, हरिः चंद्र हरिश्चंद्र । इत्यादिक सिद्ध शब्द ह्व, निपात थकी संबंध ॥११॥ अह्रो रो रात्रिषु ३ त्रिपद, अह्नो विसर्ग हित । पदांत विष रकार ह्र, राज्यादि वजित ॥१२॥ अहः पति को अहर्पति अहः गण अहर्गण जांण ।। रात्यादि तहां वरजीया, तसु आगलि पहिछांण ॥१३॥ अहः रात्रि नौं अहोरात्रि, अहः रथंतर तत्र । अहोरथंतर उ थयौ, अहोभ्यां रेफ न अत्र ।।१४।। अत्योत्युः ३ त्रिपद इहां, अकार ते विसर्ग । उकार ह्र अति पर थकां, कः अर्थ कोर्थ समग ॥१५।। हबे १ एक पद सूत्र है, अकार ते पर पेष । विसर्ग तणी उकार ह्व, हब पर थकां संपेष ॥१६॥ कः गत: को ह्र कोगतः, देवः याति तत्थ । देवो याति सिद्ध ए, मनः रथ मनोरथ ॥१७॥ आदबे लोपश ३ त्रिपदं, अवर्ण हूंति जाण । विसर्ग को लोपश् हुवे, अब पर थकां पिछांण ॥१८॥ देवा ! अत्र तणो हुवे, देवा अत्र न संधि । वाताः वाता नौं हुवै, वातावाता बंध ।।१९।। स्वरे यत्वं वा ३ त्रिपद सुत्त, अवर्ण हूंति न्हाल । विसर्ग नौं वा यत्व ह, स्वर पर थकां संभाल ॥२०॥ देवाः अत्र तणो हवै, देवा यत्र उदार । एक ठोड य नां हुवै, विकल्प कह्यौ विचार ॥२१॥ भोस: १ इक पद सूत्र ए, भोस् भगोस् अघोस् । यात पर विसर्ग तणी, लोपश अब पर घोस ॥२२॥ भो: एहि अव् ना हुदै, भो एहि सिद्ध थाय । भगो: नमस्ते भगो नम, अघो याहि अघोयाहि ॥२३॥ नामिनो र: २ द्विपद इहां, नामि स्वर थी सोय । पर विसर्ग नौं रेफ ह, अब पर थकां सुजोय ॥२४॥ अग्नि अत्र तणो हुदै, अग्निरत्र र होय । पटुः यजति नौं हुवै पटुर्यजति सोय ॥२५॥ रेफ प्रकृति कस्य खपे वा रेफ प्रकृति विसर्ग । तेह नौं विकल्प रेफ ह्व, ख प पर थकां उदग ॥२६॥ गीः पति केरौ हवै, गीर्पति र धार ।। अथवा होवे गी ट्ट पति उपध्मानी सार ॥२७॥ १७८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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