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________________ सं चरति च पर थकां, सञ्चरति न सवर्ण । घंटा ट वर्ग नौं सवर्ण, घण्टा णकार धर्ण ॥५७॥ त्वं करोति कु पर थकां, त्वङ करोति ङ होय । मं परति पु पर थकां, सम्परति म जोय ॥८॥ एक ठौड रहै मुलगी, अनुस्वार अवलोय । एक ठोड यप सवर्ण ह, यप पर थी यम जोय ॥५९॥ यवल परे यव लाव आ, अनुस्वार नौ पेष । यवल परे यवलाज ह्व, विकल्प करी संपेष ॥६०।। संवत्सर व पर थकां, सवत्सर व होय । एक ठोड रहै मूलगो, संवत्सर अवलोय ॥६१॥ यं लोकं य पर थकां, यल्लोकं सुलकार ।। सं यंता य पर थकां, सय्यंता सु यकार ॥६२॥ स्वरे म द्विपद ए सुत्त, अनुस्वार नौं जाण । स्वर पर थकां मकार है', सं अस्ति समस्ति मांण ॥६३॥ इति व्यंजन संधि म्है कही, संक्षेपे सुविचार। हिवै विसर्ग संधि पांचमी, आखू अधिक उदार ॥६४।। ॥ इति व्यंजन संधि ॥ विसर्जनीयस्य सः २ द्विपद, विसर्ग तणौ स होति । ख प पर थकां हुवै सही, कः तनोति कस्तनोति ॥१॥ श ष से वा २ द्विपद ए सुत्र, विसर्ग तणो विशेष । श ष स पर थकां श ष स ह्व, विकल्प करी सुपेष ॥२॥ क: शेते इक ठोड रहै, कश्शेते श होय । क: षंड: कष्पंड ष, कः साधु कस्साधु जोय ॥३॥ कुप्वोः कथ्यो वा त्रिपद, विसर्ग कपवर्ग संबंध । खस पर थकां ष्क थ्यो ह, विकल्प करी प्रबंध ॥४॥ कप उचारण अर्थ है, ककार गज कुंभाम । पकार डुमरु आकृति, उपध्मानीय नाम ॥५॥ कः करोति ठौड इक, ककरोति होय । कः पचति नौ वा ह, क पचति अवलोय ।।६॥ क: पठति नौ कपठति, इत्यादिक अवसान । जिह्वामूली क वर्ग बंधि, पवर्ग उपध्मान ॥७॥ वाचस्पत्यादि नाम जे, निपात थी सिद्ध होय । वाचः पति वाचस्पति, इत्यादिक बहु जोय ।।८।। तत् वृहत् आगै कर पति, चोर एक इक देव । सुट् आगम त लोप ह्र, तस्कर वृहस्पति हेव ॥९॥ खंड २१, अंक २ १७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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