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तो हिललः त्रिपद इहां, तवर्ग तणी विचार । लकार पर तेहनै हुवै तौ होवे सही लकार ॥२१॥ तत् लुनाति ल पर छतां, तल्लुनाति ल थाय । भवान् लिखति न तणौ भवाल्लिखति पाय ॥२२॥ य र ल व अंतस्था कह्या यवल रेफ वर्णेह । दोय भेद तसं दाषीया, तेह नौं न्याय सुणेह ॥२३॥ सानुनाशिक निरनुनाशिक २ नकार नौं अवधार । सानुनाशिक लकार ह, अर्द्ध चंद्र आकार ॥२४॥ न षि २ द्विपद ष पर छत, तवर्ग नो टु नाहि । भवान् षष्ट रहै मलगौ न कौ ण नहि थाय ॥२५॥ टो रन्त्यात २ द्विपद ए सुत्त, पदांत टवर्ग पाय । ता ते पर स्तोष्टु न ह षट् नर न ण नहि थाय ॥२६॥ षडर चपा अबे जबा षण्नर अमे मा व। षट् सीदंति पद मूलगौ टोरन्त्यात् पसाव ॥२७॥ नः सक् छते ३ त्रिपद कह्या, नांत पद अवधार । छत प्रत्याहार पर ह छतां, सक् नौं आगम विचार ॥२८॥ ककार कित् कार्यार्थ हे उच्चारणार्थ अकार । क इत् तातै अंत सक्, ट् इत् आदि विचार ॥२९॥ राजन् चित्रं राजश्चित्र स्तोश्चुभि श धार । नश्चा पदाते सूत्र थी, नकार नौं अनुस्वार ॥३०॥ भवान् तनोति नांत पद, भवांस्तनोति सार । सक् आगम नः सक् छते, नश्चापद अनुस्वार ॥३१॥ शे चक् वा ३ त्रिपद ए सुत्त, नांत पद अवधार । चक् आगम श पर छतै, विकल्प करी विचार ॥३२॥ भवान् शूर श पर अछ स्तोश्चु भवाञ् शूर । भवाञ्च्छूर चक् आगम १ स्तोश्चु २ चपच्छ ३ पूर ॥३३॥ कुणनो ह्रस्वाद् द्रिःस्वरे ४ ह्रस्व ते उत्तर सुभांत । ङ णन कार द्विर् ह सही, स्वर पर छत पदांत ॥३४॥ प्रत्यङ इदं प्रत्यङि ङदं सुगण् इह सुगणिह । राजन् इह नौं राजन्निह, ङण्नो ह्रस्वाद्वि इह ॥३॥ छः १ इक पद ए सूत्र नौ ह्रस्व ते उत्तर छकार।। द्वि ोवै तव छत्र नौं, तवच्छत्रं अवधार ॥३६॥ खसे चपा झसानां त्रिपद, झस नौं चप ह्र सार । खस पर छतै सुजांणजो छकार नौं सुचकार ।।३७॥ किहां यक दीर्घ थकी छ द्विर । ह्रीच्छः म्लेच्छ : पेष। खसे चपा सूत्रे करी, छकार नौ च देष ॥३८॥
खण्ड २१, अंक २
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