SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अथवा पर सूत्रे करी, पूर्व सूत्र ह्र बाध । बहुल पण ए स्थूल मति, सर्वत्र नियम न साध ।।२९।। हलादिक न कीटि तणो, कीजै लोप विचार ।। ईषादिक पद पर छतां, उदाहरण अवधार ॥३०॥ अत्र उदाहरण-हल ईषा हलीषा। लांगल ईषा लांगलीषा। मनष ईषा मनीषा । अद्य ओं अद्यों। शक अंधुः शकंधुः । कर्क अंधुः कर्कधुः । सीमन् अंतः सीमंतः । कुल अटा कुलटा । पतत् अंजली पतंजली । सार अंगः सारंगः । हलीष लांगल ईष फुनि । मनीष अद्यो जांण । शकंधु कक्कंधु वली, सीमंत कुलटा पिछांण ॥३१॥ पतंजलि सारंग ए, कह्या हलादिक देष । इनकी टि को लोपकर, अ अस् अन् अत् पेष ॥३२॥ अइ ए द्विपद अवर्ण ते, इवर्ण पर जो होय ।। बिहु भेला थइ ए हुवै, तव इदं तवेदं जोय ॥३३॥ उ ओ अवर्ण उवर्ण पर बिहु मिल होय ओकार । गंग उदकं गंगोदकं, यमुनोदक इम धार ॥३४॥ ऋ अर अवर्ण ऋवर्ण पर, बिंह मिल अर अवधार । तव ऋद्धि शब्द तणो हुवै तवद्धि सिद्ध उदार ॥३५।। क्वचित आर् ते अवर्ण तें, ऋवणं पर संपेष । बिहुं मिल कहां इक आर, हुय उदाहरण इम देष ॥३६।। अत्र उदाहरण-ऋण ऋणं ऋणाणं । प्र ऋण प्राणं । वसन ऋणं वसनाणं । कंबल ऋणं कंबलाणं । वत्सतर ऋणं वत्सतराणं । दश ऋणं दशाणं । अवर्ण ते ऋवर्ण परे, बिहु मिल आर् सुवाति । तृतीया समास मैं हुवै, शीतेन ऋत शीतात्तं ॥३७॥ ल अल् अवर्ण ल वर्ण पर, बिहुं मिल ने अल् होय । तव लकार यह पद तणी, तवल्कार सिद्ध जोय ॥३८॥ र ल बिहु सवर्ण डल सवर्ण, स श सवर्ण सुविहांण । बव सावर्ण इण पर कहै, अलंकार ना जाण ॥३९।। ऋल वर्ण बिहु सावर्ण, पद होत लकार । होतृकार इम सिद्ध ह', इहां भयरूप विचार ॥४०॥ र ल सावर्ण विकल्प करी, परि अंक नों पयंक । पल्यंक सिद्ध सुविचार नै, हृदय धार तज वंक ॥४१॥ ए ऐ ऐ अवर्ण ते एकार पर अवधार । वलि ऐकार सुपर छतै, बिहु मिल हूं ऐकार ॥४२॥ अत्र उदाहरण तव एषा तवैषा । तव ऐश्वयं तवैश्वयं । ओ ओ औ अ ओकार को, वा अवर्ण औकार । बिहु मिल ने औकार ह्व, उदाहरण अवधार ॥४३॥ १७२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy