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________________ सूत्र-आर अ वृद्धि — अकार को आ वृद्धि संज्ञ, ऋकार को हुवे आर । ईवर्ण को ऐकार ह, उवर्ण को औ सार ॥१७।। सूत्र-अन्त्य स्वरादिष्टि: अंत्य जे स्वर तसुं आदि वर्ण, टि संज्ञा सुंहि यात । सूत्र-अंत्यात पूर्वोपधा अंत्य वर्ण तै पुर्व वर्ण, उपधा संज्ञ सुहात ॥१८॥ ह्रस्व लघु अरु दीर्घ गुरु, विसर्ग सह अनुस्वार । संजोग पर जे ह्रस्व पिण, गुरु कहिये सुविचार ॥१९॥ मुख नाशिक करि जे वचन, अनुनाशिक अवधार । द्वि बिंदु विसर्ग कह्यौ, शिर बिंदु अनुस्वार ॥२०॥ अंत्य विभक्ति जेहन, तेह. पद कहिवाय ।। स्व समान जे काल ह्र, सवर्ण ग्राहक ताहि ॥२१॥ वर्ण ग्रहणे सवर्ण ग्रहण, निसुणौ तेह नौं न्याय । इवर्ण इम ग्रह करी, इ ई बिहु ग्रहवाय तथा लघु दीर्घ प्लुत आय ॥२२॥ कार ग्रहणि केवल ग्रहै, तेहनौं न्याय विचार । अकार इम ग्रहवै करी, लेवी ह्रस्व अकार ॥२३॥ तपर करण तावन्मात्र, तेह नौं न्याय संभाल । अत पर इम कहि करी, ह्रस्व अकार नी हाल ॥२४॥ अष्ट स्थान है वर्ण का, उर १ कंठ २ शिर ३ वलि दंत ४ । जिह्वामूली ५ नाशिका ६ होठ ७ तालु ८ विरतंत ॥२५॥ तीन तीश व्यंजन अस्वर, स्वर चवदै सुविसाल ४७ । अनुस्वार ४८ विसर्ग ४९ वलि, जिह्वामूली न्हाल ५० ॥२६॥ गज कुंभाकृति ५१ वर्णफुन प्लुत त्रिमात्र ५२ विचार । एवं द्वि पंचाशवर्ण मातृक वच अवधार ॥२७।। अ कवर्ग ह विसर्जन ए कह्या कंठ सुस्थान । इचवर्ग य ७ श ८ तालवी तालुक थी अठ जान ॥२८॥ ऋ टवर्ग र ष मूद्धनि, मूर्द्धा ते शिर स्थान । ल तवर्ग ल स दंतीय ह, दंत स्थान पहिछान ।।२९।। उ पवर्ग उपध्मानीय इनके स्थान सुओष्ट । ए ऐ कंठ तालु थकी, ओ औ फुनि दंतोष्ट ॥३०॥ व दंतोष्ट थकी वली, जिह्वामूली सार । जिह्वमूल थी ऊपजे, नाशिक धर अनुस्वार ॥३१॥ बंर २१, बंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524584
Book TitleTulsi Prajna 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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